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________________ झत्ति त्थि एस इणमं ण णवित्तु कुव्वे साहू अहं कुणमि तुं इध सज्झ भूदो॥57 ॥ इधर श्रेष्ठी साहू शान्ति प्रसाद मुनि भक्त श्रावक आकार शीघ्र केशलोंच को पूछते हैं-ऐसे केश नाई भी नहीं बना सकता है। तब मुनिश्री कहते हैं-मैं बना सकता हूँ आप तैयार हैं। 58 सो खुल्लगो पढम-वास-सुदिक्ख कालं गच्छेति माउलवरो परिवारजुत्तो। अस्सिं करे पढम गुच्छग-सुत्त पोत्थं दंसेविदूण पडिपुच्छदि रूप्प किं णो॥58॥ वे क्षुल्लक नेमिसागर प्रथमवर्ष दीक्षा काल को प्राप्त हुए, तब मामा परिवार सहित आए। वे सूत्र ग्रंथ प्रथम गुच्छक इनके हाथ में देखकर पूछ लेते हैं कि इसमें रुपए तो नहीं। 59 सो मोण-माणस-सुसत्त सुपंथ-पंथी तुम्हे हुरुप्प-पणगादि पदिण्ण-गच्छे। वेय्याइवच्चविमुहा कुणएंति एवं कल्लाण मग्ग-गमणत्थ इणं पपुच्छे॥59॥ वे क्षुल्लक मान सरोवर के हंस (इस संघ के प्रिय क्षुल्लक) अपने सूत्र (चर्या) में उत्तम पंथ पंथी कहते हैं-तुम्हारे जैसे ही रुपया पैसा देकर चले जाते हैं आप सभी सेवाभाव से विमुख ऐसा ही करते हो। कल्याणमार्ग के गमनार्थ इनके प्रति ऐसा प्रश्न? 60 खम्मेहि तुं वदगुणी तवि-खुल्लगो मे णाणं विहीण-सुद-हीण-जिणिंद-भत्तिं। णो दोस-तुम्ह भव-लेहि-इणं च होज्जा भो! जोग पुण्ण-सुद-चिन्तग-साहु लोए॥60॥ आप मुझे क्षमा करें, आप व्रती, गुणी एवं तपस्वी क्षुल्लक हो। मैं ज्ञान, श्रुत एवं जिनेन्द्र भक्ति विहीन हूँ। तब वे समझाते इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, जो लिखा है वह होगा। अरे! योग पूर्ण श्रुत चिन्तक (परमागम-चिन्तक) साधु भी लोक में होते हैं। 80 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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