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________________ एगा सिगालि - सिसु - संगम-भक्खमाणा झाणे रदो हु अहमिंद - हवे वि देवे ॥7 ॥ इसी अवंति-अवंतिका - उज्जैनी का एक श्रेष्ठी सुकुमाल विराग मार्ग की ओर अग्रसर अरण्य के मध्य दृढ़तप युक्त थे। तब एक शृगाली अपने बच्चों सहित (भूख से पीड़ित तीन दिवस पर्यंत) भक्षण करती रही। ये सुकुमाल मुनि ध्यान में लीन अहमिंद्र देव देवलोक (सर्वार्थसिद्धि में) में हुए । 8 विवाह - जुत्त-मयणा सिरिपाल - रण्णी । पासस्स णाम णयरी वि सुसील - णारी । मणोरमा जिrपहुँच सु-झाण- लीणा सीले परिक्ख-भव - तीर - दुवार - उग्घी ॥8॥ यहाँ मैना सुंदरी श्रीपाल से विवाही गयी । यहाँ पार्श्व की अवंतिका - अवंतिका पार्श्वनाथ से भी प्रसिद्ध है । यहाँ सुशील मनोरमा भी शील की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई। यहीं जिनप्रभु के ध्यान में लीन हुई । भव से पार होने के लिए ही उसके अंगुष्ठ के स्पर्श से नगर द्वार भी खुल गये । 9 उज्जाणए अभयघोस - मुणिं च दिक्खं ar खिप - दि तीर - सुझाण- लीणो । तस्सि विघाद-उवसग्ग-किदुं च सत्तू आगच्छदे अवर सम्म तवे हु अंतो ॥ 9॥ यहाँ के उद्यान में अभयघोष मुनि दीक्षा लेकर क्षिप्रानदी के तट पर ध्यान युक्त थे तभी उनके ऊपर उपसर्ग या विघात हेतु उनका एक शत्रु आया, पर वे परम तप में लीन अंत:कृत केवली हुए । 10 सो भद्दबाहु-मुणिणाध तवे वि चिट्टे णाणणि बोह - परिणाण पवोहएज्जा । दुभिक्ख-बारह सु- बारह - वास- जादो सो बारहस्सहस साहु- दहिण्ण - भागे ॥10 ॥ भद्रबाहु स्वामी तप में स्थित ज्ञान से (निमित्तज्ञान) से जानते कि उत्तर भारत में बारह वर्ष का दुर्मिक्ष पड़ेगा। इसलिए वे 12 हजार साधुओं के संघ के साथ दक्षिण चले गये । सम्मदि सम्भवो :: 219
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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