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________________ 11 सिस्सो इमस्स णव-दिक्खिद चंद गुत्तो मोरिज्ज-आइरियसाहु विसाह-सूरी। णिज्जावगत्त-अणपत्त-समाहि-सम्म सेसे हु वारह सहस्स सिढिल्ल चारे॥1॥ इनके नवदीशित शिष्य चन्द्र गुप्त मौर्य-विशाखाचार्य इनके निर्यापकत्व में भद्रबाहु सम्यक् समाधि को प्राप्त हुए। शेष बारह हजार उज्जैन में शिथिलाचारी हो गये। 12 दव्वो दिवागर समो सिरि-सिद्ध-सेणो कल्लाण-मंदिर-थुदीइ हु पास-रूवं। पज्जोदए हु जिणसासण-दीव-एत्थं भत्तामर-प्पणयणं मुणि-माण तुंगो॥12॥ दिव्य दिवाकर सम सिद्धसेन यहीं पर कल्याण मंदिर की स्तुति से पार्श्व रूप को दिखलाते हैं। जिससे जिन शासन का दीप यहाँ उद्योत हुआ। यहीं पर मानतुंगाचार्य भक्तामर स्तोत्र का प्रणयन करते हैं। 13 चिन्तामणी किदि पबंध सुधोद-वुत्ती सूरी किदं गुणयरेण वि रायमल्लं। सूरी विसाह-महसेणयसंतिसेणो अत्थं हवे अमिद-विण्हु सुदो वि कित्ती॥13॥ कालिक्क गद्दभिल-चंदयविक्कमो वि भोजो वि भुंज-मह-धण्ण-धरा इमो त्थि। उज्जेण-दिट्ठि-महणिज्ज-सदा हु अत्थि सा सक्किदस्स पयडी पुर-पाइगस्स॥14॥ यहाँ उज्जैनी में मानतुंगकृत प्रबंध चिन्तामणि, गुणाकर सूरिकृत भक्तामर स्तोत्रवृत्ति, ब्रह्म रायमल्ल वर्णी की भक्तामर स्तोत्र वृत्ति आदि इसी नगरी में लिखी गयी। यह नगरी संस्कृत और प्राकृत की पुरा प्रकृति की दृष्टि से सदैव महनीय रही है। 220 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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