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________________ सन् 2001 जुलाई में चातुर्मास को उज्जैन में स्थापित किया। आचार्य सन्मतिसागर के प्रति लोग अपूर्व श्रद्धा में लीन हुए। सो ठीक है जो इस स्थली को प्राप्त होता है वह आ-मर्यादा युक्त मुनियों का स्वागत करता है। ऐसी भी आवंतिका है जो उज्जैनी कहलाती है। रट्ठज्झगो सयलदेसय-चेडगो वि तस्सेव मोसिग-अवंतिग-राय-राया। मोसी सिवा वि णगरस्स वि चंद भज्जा एत्थं तवं कुणदि वीर-पहू वि सम्मं॥4॥ संपूर्ण देश के राष्ट्राध्यक्ष चेटक (महावीर के नाना) थे उनके मौसिया जी अवंतिका के राजा थे। इनकी मौसी शिवा नगर के सम्राट चन्द्रप्रद्योत की पत्नी थी। यहाँ पर महावीर प्रभु सम्यक् तप साधना करते हैं। अस्सि मसाण-अदिमुत्तग-साहणाए काले महा हु अदिवीर-भयंकरं च। ओसग्ग-कत्त-अवि-रुद्द-पसंत-जादो वीरेण खम्म अदिवीर-सुणाम-भासे॥5॥ साधना काल में महावीर (अतिवीर) अतिमुक्तक श्मशान में भयंकर उपसर्ग को प्राप्त हुए। उपसर्ग करते हुए जब रुद्र थक गया, तब वीर से क्षमा मांगता और उन्हें अतिवीर कह उठता है। आवंतिगा हु भरहो वि समाड-होज्जा इंद व्व वेहव समो हु इमो त्थि सव्वा। पिय्या इमाउ अमरावदि तुल्ल एसा साहिच्च पुण्णमह वण्णण-जायदे वि॥6॥ यह अवन्तिका भरत सम्राट की शोभा थी। यह इन्द्र के वैभव की तरह सर्व प्रिया अमरावती भी थी। साहित्य में इसका पूर्ण विस्तार से वर्णन भी मिलता है। 7 आवंति-सेट्ठि-सुउमाल-विराग-मग्गं आरण्ण-मज्झ-तव जुत्त-दिढो हु भूदो। 218 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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