SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस संस्कृत महाविद्यालय में प्राकृताचार्य सुनीलसागर यहाँ सात वर्ष तक जो पढ़े उसे स्मरण करते हैं। मोतीलाल, दयाचंद आदि द्वारा पठित व्याकरण एवं साहित्य 'आदि मनीषियों से विचार विमर्श करते हैं। 59 जम्मं जयंति-गुरुणो अणुमण्ण-माणे भूकंप-पीडिद जणाण सहाय-हेदूं। जा रासि-पत्त-तध-दाण-दएज्जदे सो पच्छा चरेदि विरखेडि सिहोर-राहं॥59॥ यहाँ जन्म जयन्ती आचार्य सन्मति सागर की मनाई गयी। भूकंप पीड़ितों के लिए धन एकत्रित कर उसे यथास्थान पहुँचाया गया, फिर यह संघ वरखेड़ी, सिहोर, राहतगढ़ पहुंचा। 60 पण्णं-पसण्ण-मुणि-वे बहु-अग्ग-भूदा वज्जे मढे हु पहु-सीदल-तप्प-भूमिं। दंसेज्ज-मण्णुर-अटारि-विदिस्स-पत्तो। भदिल्ल-णाम-भिलसा अवि संसएज्जा॥60॥ राहतगढ़ में प्रज्ञासागर एवं प्रसन्नसागर दो मुनि आचार्य श्री की अगवानी करते। फिर वज्रमढ़ में शीतलनाथ की तपभूमि का दर्शन करते। संघ मानौरा, अटारी आदि होता हुआ विदिशा आया। यह प्राचीन भद्रिल पुरी भेलसा कहलाता है। 61 कल्लाण-णाण-उदयं परिपेक्ख-वंतो संचीइ थूव-जिणमंदिर-आदि-ठाणं। पासिद्ध-बोद्ध-इध-धूव-कहेज्ज माणं हब्बीबए मुणिवरस्स समाहि आदिं॥61॥ शीतलनाथ के ज्ञान कल्याणक की उदयगिरि को देखता हुआ संघ सांची पहुँचा। यहाँ स्तूप एवं जिनमंदिर आदि स्थान को देखता हुआ संघ प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप के प्रमाण को देखते हैं। हबीबगंज में आदिसागर का समाधि दिवस मनाते हैं। 62 अण्णं दिवं च विमलं मह कित्ति-दिक्खं कुव्वंत-एग-उववासय-अंतरं च। 212 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy