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________________ सागर पवेस 55 गामे चणोअ - णवखेड परे - बहेरे गच्छेज्ज गच्छ इणमो अवि अंकुर म्हि । सेट्ठीजणेहि मुणिमत्त जणेहि तत्थ कुव्वेज्ज माण- बहुमाणय सागरे वि ॥55 ॥ आचार्य संघ चनौआ, नयाखेड़ा, परसोरिया बहेरिया आदि में प्रवष्टि हुआ । अंकुरकालोनी में श्रेष्ठीजनों एवं मुनिभक्त श्रावकों द्वारा मान - बहुमान पूर्वक सागर में प्रवेश कराया गया । 56 एसो पुरोत्थि जिणदंसण सक्किदस्स विस्सो हु विस्स विद - विज्ज विदो वि खेत्तो । गोड हरिसिह - सुणाम जुदो हि अस्सिं वण्णी - गणेस- अणुठाविद - सक्किदो वि 156 1 I यह नगर सागर है जैनदर्शन और संस्कृत का केन्द्र । यहाँ एक विश्व विद्यालय हरीसिंह गौड के नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ पर गणेशवर्णी द्वारा स्थापित महाविद्यालय संस्कृत शिक्षण का केन्द्र है। 57 सीदे इमो पवसदे अवरह - काले पच्चीसए जणवरीइ सुसिक्ख - ठाणे । छव्वीसए जणवरी इध भूइकंपे कच्छे भुजे बहु विणास - अणेग-खेत्ते ।। 57 ॥ संघ सन् 2001 शीतकाल के अपराह्न में 25 जनवरी को गणेश संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश करता । 26 जनवरी 2001 को प्रातः 8 बजे के करीब भूकंप से कच्छ एवं भुज बहुत विनाश को प्राप्त हुए। अनेक प्रदेशों में भी इसका प्रभाव पड़ा। 58 अत्थेव पाइय विसेस -पपण्ण सूरी सारेज्जदे पढिद-सत्त- पमाण - वासं । साहिच्च-वागरण- मोति दयादि पण्णे । तच्चाण णाण- कुणमाण - इधेव बत्ता ॥58 ॥ सम्मदि सम्भवो :: 211
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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