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________________ सत्थीय माणो तिलोयपण्णत्तीए-चदुत्थाहियारे जादो सिद्धो वीरो, तद्दिवसे गोदमो परमणाणी । जादो तस्सि सिद्धे, सुधम्मसामी तदो जादो ॥ 5 ॥ तम्हि कदकम्मणासे, जंबूसामिवि केवली जादो । तत्थ वि सिद्धिपवणे, केवलिणो णत्थि अणुबद्धा ॥16 ॥ कुंडलगिरिम्हि चरिमो, केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो ॥ 52 बाबा- इमस्स पडिमा हु चमक्क - जुत्ता मोगल्ल - सासग-जणा परिछिण्णदे तं । आसंख-घाद - महु-मक्खि-पहार - सव्वे पल्लायदे तद हुदंसण भत्ति - र - राया ॥152 ॥ बड़े बाबा की प्रतिमा चमत्कारी हैं। मुगल शासक की सेना तब इसे नष्ट करने के लिए प्रहार करती, तभी असंख मधु मक्खियां ही उन सैनिकों को ऐसा करने से रोक देती हैं। सेना भाग जाती। राजा तब भक्ति युक्त उनके दर्शन करता है। 53 अज्जेव छत्त-‍ - महुमक्खि-गणाण अत्थि णो दंसणत्थि - मणुजाण पहारएंति । तेसट्ठि मंदिर-विसाल - सुमाण थंभो मग्गोत्थि छेघरय - वंदणि- वंदएज्जा ॥53॥ आज भी यहाँ मधुमक्खियों के छत्तों के समूह हैं । वे दर्शनार्थी जनों को कुछ भी घात नहीं करती। 63 मंदिर एवं एक विशाल मानस्थंभ है । चढ़ने का मार्ग छैघरिया कहलाता हैं । इसी मार्ग से वंदनार्थी वंदना के लिए जाते हैं । 54 मज्झह सामइग आदि सुभत्ति भावो दो दुवे हु दिवसे सुद लेह पुव्वे । देवं च हिंड-समणं च दमोह पच्छा । पत्तो गढे हु गुरु आण- पमाण देसो ॥54॥ मध्याह्न सामायिक आदि फिर भक्ति भाव युक्त दो दिवस श्रुत प्रमाण एवं अभिलेख निरीक्षणपूर्वक संघ देवडोंगरा, हिंडोरिया, समण्णा होते हुए दमोह आया । इसके पश्चात् गढ़ाकोटा में, गुरु आज्ञा प्रमाण है ऐसा उपदेश हुआ । 210 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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