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________________ 23 कल्लाणगं चदुथलं अणुदंस-णंदे सम्माङ-संपडि-विणिम्मिद-थूव-उच्चं सिंहस्स चिंहचदु-दिग्ग-सुचक्क धम्म अस्साण बिंब उसहाणं रटुचिण्हो॥23॥ श्रेयांस प्रभु के चार कल्याणक की सिंहपुरी के दर्शन से संघ आनंदित होता है। यहाँ सम्प्रति सम्प्रट के द्वारा निर्माण कराए गये स्तूप पर चारों दिशाओं में सिंह, धर्मचक्र भी हैं। इसके नीचे अश्व और वृषभ बैल के बिंब हैं। सिंहचिन्ह (चतुर्दिग सिंह चिन्ह) यही राष्ट्र चिंह है। वाराणसी चाउम्मासो 24 वाराणसी दु वरुणा असई णदी हु तस्सिं जुगे हुइणमो हु वणारसो वि। पासं सुवास पहु खेत्त सुदंसणेज्जा वण्णी महोदय-सियाद-सुवाद विज्जं॥24॥ वाराणसी-वरुणा और अस्सी नदी युक्त यह बनारस है। यह पार्श्वप्रभु और सुपार्श्व का क्षेत्र है। यहाँ पर गणेश प्रसाद वर्णी द्वारा स्थापित किया केन्द्र भी है। जिसे स्याद्वाद महाविद्यालय कहते हैं। विस्सविज्जालयो 25 अम्हेहि संगि-पढिदा बहुछात्त-छत्ता विस्सेग-विज्ज महविज्ज-सुसोह-पाढं। देसे विदेस बहुले सुद पागिदं च ते सक्किदं च जिण दंसण णाद-सीला।25।। हमारे साथ (लेखक उदयचन्द्र के साथ) पढ़े हुए अनेक छात्रों का एक मात्र क्षेत्र विश्वविद्यालय, महाविद्यालय आदि की पठन पद्धति को संचालित कर रहे हैं। यहाँ के छात्र देश विदेश में प्राकृत-संस्कृत एवं जैनदर्शन का मान बढ़ाते रहे हैं। 26 बी एच यू अवर सक्किद-विस्स-पीढे देहल्लि खेत्तकुरु-सागर जाबले वि। 184 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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