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________________ कोढिल्ल गोउल रमेस-सुणंद-फूलो पेम्मो जयो वि उदयोउदयो अमिल्लो॥26॥ बी. एच. यू., संस्कृत विश्वविद्यालय, देहली, कुरुक्षेत्र, सागर जबलपुर, उदयपुर आदि के विश्वविद्यालय में अध्यापन कर प्राकृत, संस्कृत, जैनदर्शन, बौद्धदर्शन, सिद्धान्त आदि का मान बढ़ाया। दरबारीलाल कोठिया, गोकुलचंद, फूलचंद, रमेश, महेन्द्र, नंदलाल, प्रेम सुमन, जयकुमार, उदयचंद्र (उदयपुर), उदयचंद (वाराणसी) अमृतलाल आदि इन्हीं विश्वविद्यालयों में रहे हैं। __27 एसा हु सत्त-जण-पद्द-पहाण-खेत्तो पासस्स गभ-तव-णाण-कलाण-खेत्तो। अग्गी-जलंत-य-फणिंद इधेव रक्खे चंदपहुस्स पडिमा हु समंत जप्पे॥27॥ यह वाराणसी सात जनपद प्रधान क्षेत्र है। पार्श्वप्रभु के गर्भ, तप और ज्ञान कल्याणक का यही क्षेत्र है। यहीं जलते हुए नाग नागिन की रक्षा की गयी थी। यहाँ पर शिवलिंग से चन्द्रप्रभु की प्रतिमा समंतभद्र के जाप से निकली थी। 28 णिण्णाणवे हु चदुमास-इधेव ठाणं सो इंदभूदि-वडुगो जिण-दिक्खजुत्तो। वीरस्स सिस्स-गुरुभत्तिय-पुण्णिमाए तत्तो हु पुण्णिम गुरू चदुमास चिट्ठे28॥ संघ 1999 के चातुर्मास को यहीं गुरु पूर्णिमा की प्रभावना के साथ करता है। इस दिन इंद्रभूति बटुक वीर से दीक्षित हुए उनके प्रधान शिष्य बने फिर गुरु भक्ति से गुरु पूर्णिमा प्रसिद्ध हुई। तभी से चातुर्मास की स्थापना गुरु पूर्णिमा पर होती है। 29 इंदो ह अग्गि-गण-वाउ-सुची सुधम्मो मंडिक्क-मोरिय-अकंपि-अचल्ल-मेदो। सिस्सो पभास-गण-सोहिद वीर-संघो अज्जी मुणी बहुजणा वदधारि दिव्वा ॥29॥ इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, शुचिदत्त, सुधर्म, मांडिक, मौर्यपुत्र अकंपित, अचल, मेदार्य एवं प्रभास गणधरों से सुशोभित वीर संघ था। इनके संघ में श्रावकश्राविकाएं, व्रतधारी, आर्यिका एवं मुनि आदि बहुत से लोग थे। सम्मदि सम्भवो :: 185
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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