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________________ उनके निर्वाण दिवस पर होती है । यहीं पर समयसार का संस्कृत सहित स्वाध्याय किया गया है। 17 अस्सं इथे पणुववास समाहि जादो संवेगसागर - मुणिस्स हवेदि सम्मो । रट्ठल्लगो हि जय सीदल - आदि पण्णा छोटे - रमेस - णलिणो वि अणूवचंदो ॥17॥ यहाँ पर संवेगसागर की पांच उपवास पूर्वक समाधि होती है । यहाँ आचार्य महावीरकीर्ति संबंधी राष्ट्रीय गोष्ठी में जयकुमार, शीतलचंद्र, कपूरचंद्र, छोटेलाल, रमेशचन्द्र, नलिनशास्त्री, अनूपचंद्र, विजयकुमार, सनतकुमार आदि उपस्थित हुए । 18 माघस्स सत्तमि सुदे इगसट्ठि जम्मे विस्सस्स सुज्जय-सुणील-लिहिज्ज - गंथं । विम्मोच्चणं फरवरिम्ह समाहि सूरिं एलक्क-सुज्जसुभदस्स वि दिक्खएज्जा ॥18 ॥ यहाँ पर माघशुक्ला सप्तमी को आचार्य श्री की जन्मजयन्ती मनाई गयी । यहीं पर सुनीलसागर द्वारा लिखित 'विश्व का सूर्य' पुस्तक का विमोचन हुआ । फरवरी में आचार्य आदिसागर का 86वां समाधि दिवस मनाया गया। इस अवसर पर सूर्यसागर एवं सुभद्र क्षुल्लक से ऐलक बने । 19 राइट्ठठाण - बहुमण्ण-विहार- मुक्खो रज्जस्स पाल सिरिसुंदरसिंहमंती । अज्झक्ख राम पहुदी गुरुणा असीसं ज्जेदि एस पणसत्तर वास - काले ॥19॥ राजस्थान (उदयपुर) के बहुमान्य विहार के प्रमुख नागरिक राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी, सभा अध्यक्ष रामनारायण आदि मन्त्री गुरु से आशीष लेते हैं। 75 दिन प्रवास के पश्चात् संघ वहाँ से विहार करता है । 182 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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