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________________ जाणे पहण्ण गद एगणरो असंखे पेहेज्ज पेह अणुपेह विसेस-णिच्चं॥3॥ यह संसार चतुर्गति रूप है, इसमें कहीं भी सार नहीं, वहाँ कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता है। यान के घात से एक मनुष्य क्या अनेक नष्ट हो जाते हैं। इसलिए सदैव अनुप्रेक्षण कर अपनी प्रेक्षा से विशेष चिन्तन कर अनित्य, अशरण आदि भावनाओं को भाना चाहिए। 14 गंगाणदी हु जल कल्ल-सुबाढ़ बाढ़े अस्सी-सुबिंब-इग-ते फुड-माण-जुत्ता। पासेण संग पउमावदि-चोविसी वा जिण्णं जिणालय गिहे वि अणेग बिंबा॥14॥ गंगानदी के कल-कल नीर की बाढ़ आने पर नगर में अस्सी जिनबिंब एक इंच से तीन फुट के मान वाले थे निकले। यहाँ पार्श्वप्रभु के साथ पद्मावती और चौबीस मूर्ति भी थी। ये जीर्णता को प्राप्त थीं। यहाँ पर जीर्ण जिनालय में भी अनेक मूर्तियां हैं। 15 कुव्वेज्ज किं विणु पसत्थिपमाण-बिंबं दंसेविदूण खिद-खिण्ण इमो वि संघो। वत्तिक्खरादो फतुहाइ कबीर-पंथिं माणं च पत्त बहुमाण पटण्ण-पत्तो15॥ प्रशस्ति प्रमाण रहित जिनबिंबों को देखकर संघ क्या कर सकता था। खेद खिन्न के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। इसके पश्चात् वक्तियारपुर संघ आया। यहाँ से फतुहा पहुँचा यहीं के कबीर-पंथी मठ में यह संघ बहुमान को प्राप्त हुआ। फिर पटना पहुंचा। 16 अस्सिं पुरे हु गुलजार सुखेत्त-राजे णिव्वाण ठाणय-सुदंसण-राज सेट्टी। सीले दिढो परमसेट्ठि गुणाण गाणं दंसेज्ज सज्झ समयस्स सुसक्किदस्स॥16॥ इस नगर के समीप गुलजार क्षेत्र है। यह सुदर्शन राजश्रेष्ठी की निर्वाणस्थली हैं। राजश्रेष्ठी शील में दृढ़ परम श्रेष्ठी के गुणों की स्तुति पौष शुक्ला पंचमी को सम्मदि सम्भवो :: 181
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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