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________________ 10 अस्सिं च सावग-जणा अदि-खेद-खिण्णा भासेंति वास-उपवास-विहिं ण कुव्वे। सो सूरि-मंद-मुद हास-तणं च रागो किं किं कधे तव-तवे बहु दंसि-जादा 10॥ इसमें सभी श्रावक दुःखी उपवास विधि को आगे नहीं करने का कथन करते तब ये सूरी मंद हास पूर्वक कहते तन (शरीर) के प्रति राग क्यों, क्यों है तप ताप। तपने वाले की ओर समाज दर्शियों की बहुलता हो जाती है। 11 सो आइरिज्ज-सिरमोर-तवीस-जोगी अप्पत्थि-गोदम-मुणी सुमणो वि मेहो। दिक्खं च पत्त गुरुगारव-जुत्त-सव्वे खिण्णा गिही वि कमला गिहचत्त-मग्गी॥11॥ वे आचार्य शिरोमणि, तपस्वी योगी थे। गौतम, सुमन, मेघसागर भी दीक्षा प्राप्त आत्मार्थी बने। ये सभी गुरु के गौरव थे। एक खिन्न गृहिणी कमलाबाई (तीन लड़के तीन लड़कियों की मातुश्री) क्षुल्लिका दीक्षा ले लेती है। 12 गेही जणो दिवर-सव्व-सुरक्खणं च आसीस-जुत्त-मरणं कुणएदि तेसिं। सो धम्मणि?-मुणिभत्त-सुभग्ग-भग्गं मण्णेदि तेण परिकारण-सव्व-इट्ठो॥12॥ कमलाबाई का देवर गृही था, वह पूर्ण परिवार के रक्षण भाव का आशीष लेता है दाहोद में। वह धर्मनिष्ठ, मुनिभक्त अपने को भाग्यशाली मानता है। उस कारण से उसके यहाँ सभी इष्ट होता है। 13 दाहोदए मुणिवरो गिहएदि भुंजं वावीस-दिण्णचदुमास-सुझाण-लीणो। सो संतरामपुर-पीढय णाम गामं तत्थेव दिक्ख-चरणस्स कलाण-काले॥13॥ दाहोद के चातुर्मास में मुनिवर (144 दिन में) मात्र बावीस दिन (22 दिन) आहार लेते हैं। वे ध्यान में लीन संतरामपुर के पश्चात् पीठ नामक गाँव आते। वहाँ सम्मदि सम्भवो :: 135
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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