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________________ पंच कल्याणक के समय चरणसागर क्षुल्लक दीक्षा को प्राप्त होते हैं। उदयपुर पवासो 14 माणस्स-थंभ-पहु बाहुबलिस्स भत्ती आसम्म-ठाणय-असोग-सुखेत्त-पंचे। कल्लाणगं च कुणिदूण दएज्ज दिक्खं खुल्लग्गगो हु गुणसायर-खेर-गज्जं॥14॥ अशोक नगर (उदयपुर (राज) में भक्तिभाव युक्त मानस्तंभ और बाहुबली की प्रतिमा का पंचकल्याणक हुआ। यहीं कल्याणक करके क्षुल्लक दीक्षा दी जाती है। वे गुणसागर क्षुल्लक हुए और खेरवाड़ा में गजेन्द्रसागर मुनि बने। डूंगरपुर 15 माहुच्छवा हु महधम्म पभावणाए णागप्फणिं च पहुपास सुदंसणं च। पच्छा स डूंगरय गाम-सुडूंगरम्हि तेरासि-वास चदुमास-तवं तवेज्जा15॥ महती प्रभावना के साथ नागफणी पार्श्वनाथ के दर्शन किए, इसके पश्चात् अति उत्सव युक्त 1983 का चतुर्मास वह डूंगरों के डूंगरपुर में किया। 16 रट्ठोर-गाम सदभावण-दिक्ख दिक्खा अज्जी हु दंसणमदी खुल णाण-तप्यो। सोलंबरे हपण-कल्लण-णीर-गेहे जाएज्ज उच्छव-महुच्छव-सम्म-सम्मो॥16॥ रठोड़ा ग्राम में आर्यिका दर्शनमति, क्षुल्लक ज्ञानसागर एवं तपसागर दीक्षा युक्त सद्भावना का परिचय देते हैं। सलूम्बर के जलमंदिर में पंचकल्याण का उत्सव अति आनंदपूर्वक संपन्न हुआ। 136 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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