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________________ [पंचम खण्ड : परिशिष्ट ८१९ आगे रहतीं। आपके इन आत्मिक गुणों से समूचा चतुर्विध संघ आपसे प्रभावित था। वि.सं. २०३१ के सवाई माधोपुर चातुर्मास में भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर परमपूज्य युगमनीषी आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. ने आपको 'प्रवर्तिनी' पद से विभूषित किया। आपका संघनायक के प्रति समर्पण व साध्वी समुदाय के प्रति वात्सल्य भाव अनूठा था। अपनी सहज वात्सल्यपूर्ण शैली में प्रत्येक आगन्तुक को जीवन-निर्माण, समर्पण, सेवा व संघ-निष्ठा की प्रेरणा देने में आप निष्णात थीं। वृद्धावस्था व शारीरिक अशक्यता के कारण वि.सं. २०३५ में जोधपुर संघ के अतिशय अनुरोध पर आपका जोधपुर स्थिरवास विराजना हुआ। तप:पूत महासतीवर्या के विराजने से वर्द्धमान भवन, पावटा धर्मस्थानक तीर्थधाम बना रहा। पुण्यनिधान इन महासतीवर्या के दर्शन व मांगलिक-श्रवण हेतु प्रतिदिन सैंकडों भाई-बहिन नियमित रूप से उपस्थित होते। वि.सं. २०४२ चैत्र कृष्णा त्रयोदशी दिनांक ७ अप्रेल, १९८६ को रात्रि में ६० वर्ष की सुदीर्घ संयम-साधना व ७ वर्ष के स्थिरवास के पश्चात् आपका संलेखनापूर्वक महाप्रयाण हुआ। • महासती श्री चूनाजी म.सा. ___आपका जन्म थाँवला (नागौर) में हुआ। आप श्री चुन्नीलालजी आबड़ की सुपुत्री थीं। आपने वि.सं. १९८३ | को अजमेर में महासती श्री भीमकंवरजी म.सा. की निश्रा में भागवती दीक्षा अंगीकार की एवं निरतिचार संयम का पालन किया। २७ वर्ष तक संयमनिष्ठ जीवन के अनन्तर वि.सं. २०१० भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को अजमेर में आपका | स्वर्गवास हो गया। • महासती श्री धूलाजी म.सा. आपका जन्म पीपाड़ शहर में हुआ। आपके पिता श्री छोटमलजी गाँधी तथा माता श्रीमती सुन्दरबाई थीं। आपके पति श्री मूलचन्दजी कटारिया का आकस्मिक निधन हो जाने से आपको संसार से विरक्ति हो गयी। आपने वि.सं. १९८४ के वैशाख माह में हरमाड़ा में महासती श्री राधाजी म.सा. की निश्रा में भागवती दीक्षा | अंगीकार की। १५ वर्ष के श्रमणी-जीवन के अनन्तर वि.सं. १९९९ में महामंदिर-जोधपुर में आपका स्वर्गवास हो गया। • महासती श्री स्वरूपकँवरजी म.सा. __ आपका जन्म जोधपुर में वि.सं. १९४६ वैशाख कृष्णा तृतीया को हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्रीमान् इन्द्रमलजी कोठारी तथा माता श्रीमती जीवनकँवरजी थीं। आपका विवाह जोधपुर के श्री सांवतराजजी बागरेचा के साथ हुआ। आपके पति का आकस्मिक निधन हो जाने से आप संसार से विरक्त हो गयीं तथा वि.सं. १९९१ माघ शुक्ला पंचमी को महासती श्री अमरकंवरजी म.सा. (बड़े) की निश्रा में भागवती दीक्षा ग्रहण की। वि.सं. २०२९ आषाढ कृष्णा अष्टमी को घोड़ों का चौक, जोधपुर में आपका समाधिमरण हो गया।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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