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________________ ८१८ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं • श्री कैलाशमुनिजी म.सा. आपका जन्म वि.सं. २०१८ श्रावण कृष्णा त्रयोदशी को हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्री शुभलालजी सा. सिंघवी तथा माता सुश्राविका श्रीमती उच्छबकंवरजी सिंघवी ने बाल्यावस्था से ही आपको सत्संस्कार प्रदान किए। अपनी दादीजी के संथारापूर्वक समाधिमरण को देखकर आपको संसार से विरक्ति हो गयी। आपने वि.सं.२०४३ माघ शुक्ला दशमी रविवार ८ फरवरी १९८७ को २५ वर्ष की युवावस्था में आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से जोधपुर में भागवती दीक्षा ग्रहण की। ___दीक्षित होकर आपने संयम का सजगता से पालन किया। अनेक छोटी-बड़ी तपस्याएँ भी की। युवावर्ग को | धर्म में जोड़ने में आपकी अहंभूमिका रही। गर्मी के कारण लू के प्रकोप से अचानक स्वास्थ्य बिगड़ जाने से वि.सं.२०४८ ज्येष्ठ कृष्णा नवमी शुक्रवार दिनांक ७ जून १९९१ को जोधपुर में आपका असामयिक देहावसान हो गया। (ब) प्रमुख साध्वीवृन्द का परिचय • साध्वीप्रमुखा प्रवर्तिनी महासती श्री सुन्दर कंवर जी म.सा. जिनका नाम, व्यक्तित्व एवं साधनामय जीवन तीनों ही सुन्दर, ऐसी महासती श्री सुन्दरकंवर जी म.सा. का जन्म वि.सं. १९६७ में श्री भुजबल जी राजपूत की धर्मपत्नी श्रीमती केशरबाई की कुक्षि से हुआ। आपके पिताजी रतलाम नरेश की सेवा में कार्यरत थे। बचपन से ही आप श्रेष्ठिवर्य श्री चांदमलजी मुणोत रियांवालों की धर्मपत्नी की सेवा में थे। सेवा, सरलता, विनय एवं आपके सुन्दर सलोने व्यक्तित्व ने सेठानी सा को आकर्षित कर लिया व उन्होंने मातृवत् आपका संरक्षण कर आपको धर्म संस्कार प्रदान किये। सेठानी सा. उन्हें बराबर संत-सतियों के दर्शन व समागम हेतु साथ ले जाती। महापुरुषों के पावन दर्शन व संत समागम से आपके मन में प्रसुप्त वैराग्य संस्कार जागृत हुए और आपने महासती छोगाजी म.सा. के चरणों में अपने आपको समर्पित करने का दृढ निश्चय किया। पूज्या महासती जी से ज्ञान-ध्यान सीख कर आपने अपने धर्मपिता श्रेष्ठिवर्य श्री चाँदमलजी व उनकी धर्मशीला सहधर्मिणी की आज्ञा प्राप्त कर वि.सं. १९८३ कार्तिक शुक्ला १५ को १६ वर्ष की वय में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार कर संयम-मार्ग में अपने कदम बढाए। श्रमणी दीक्षा अंगीकार कर आपने पूज्या गुरुणी मैया की अहर्निश सेवा करते हुए उनसे शास्त्रों व थोकड़ों का अच्छा अभ्यास किया। आपने गुरु-भगिनी महासती जी श्री केवलकंवर जी म.सा. की भी अनुपम सेवा की। पूज्या गुरुणी जी व गुरु भगिनी जी म.सा. की सेवा में आपका लम्बे समय तक अजमेर विराजना रहा। इसके अनन्तर आपका विचरण विहार मुख्यतः मारवाड़ व मेरवाड़ में रहा। आपके विचरण विहार से मुख्यतः जयपुर, जोधपुर ब्यावर, अजमेर, पाली, मदनगंज, भोपालगढ़, थांवला, अहमदाबाद, मसूदा आदि क्षेत्र लाभान्वित रहे। ___ आपका स्वभाव मधुर, हृदय सरल, व्यक्तित्व विनम्र तथा वाणी प्रभावी थी। जैन जैनेतर जो भी इस दिव्यमूर्ति महासाध्वी के दर्शन करता, प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इन बाल ब्रह्मचारिणी महासती जी के जीवन के पोर पोर में धर्म व संयम रमा था। बड़ों की ही नहीं वरन् छोटी महासतियों की सेवा या वैय्यावृत्य करने में भी आप सदा
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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