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________________ ७५४ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं धारो धारो री सोभागिन शील की चून्दडी जी ॥टेर ॥ सांचो । झूठे भूषण में मत राचो, शील धर्म को भूषण राखो तन-मन से थे प्रेम, एक सत धर्म से जी ॥ कुछ भजन पर्वों से सम्बद्ध हैं, रक्षाबन्धन पर्व पर जीव की यतना करने का संदेश देते हुए आचार्य श्री फरमाते जीव दया ही रक्षा भारी, मन में बांधी जे। इह भव पर भव पामे साता, अविचल पद लीजे ॥ दीपावली पर दीपक की तरह साधना रत रहने की प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री फरमाते हैं दीपक ज्यों जीवन जलता है मूल्यवान भाया रे जगत् में | सत्पुरुषों का जीवन परहित, जलता शोभाया रे जगत् में | वर्षाऋतु में धर्म की करणी करने के लिए प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री फरमाते हैं जीव की जतना कर लीजे रे । आयो वर्षावास धर्म की करणी कर लीजे रे । या धर्मको मूल समझ कर, समता रस पीजे रे ।। आचार्य श्री ने अपनी काव्य-रचना में मूलतः आध्यात्मिक पक्ष को ही प्रस्तुत किया है । सामाजिक अनुष्ठानों, | पर्वों और उत्सवों को भी आपने काव्य में आध्यात्मिक रंग दिया है। आचार्यप्रवर ने जीवन की विषमता को हटाकर समता रस का पान कराने के साथ आदर्श समाज के निर्माण का भी मार्ग प्रशस्त किया है। अप्रकाशित पद्य-आचार्य श्री के अनेक पद्य अप्रकाशित हैं और वे इस समय अनुपलब्ध बने हुए हैं। (२) स्वाध्याय माला (प्रथम भाग ) पूज्य आचार्यप्रवर का स्वाध्याय पर विशेष बल था । आप स्वयं भी स्वाध्याय करते थे तथा आगन्तुकों को भी स्वाध्याय के लिए प्रेरित करते थे । सन् १९४७ में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल का कार्यालय जोधपुर में था। उस समय जैन कन्या बोधिनी के | प्रथम एवं द्वितीय भाग के प्रकाशन के पश्चात् तृतीय पुष्प के रूप में स्वाध्याय-माला (प्रथम भाग) का प्रकाशन हुआ था। 'स्वाध्याय माला' पुस्तक के इस भाग में 'वीर जिनस्तव' (अभयदेवसूरि रचित) एवं 'गौतम कुलक' नामक प्राकृत भाषा की कृतियों का शब्दार्थ, भावार्थ के साथ विवेचन उपलब्ध है । प्रत्येक गाथा का हिन्दी में छायानुवाद भी दिया गया है । वीर जिनस्तव एवं गौतमकुलक इस कृति के पूर्व अप्रकाशित थे। उन्हें पाण्डुलिपि से पूज्य आचार्यप्रवर ने | विवेचन सहित तैयार किया था। पुस्तक के परिशिष्ट में गौतम कुलक से सम्बद्ध १५ कथानक संक्षेप में सरस भाषा में दिए गए हैं। कथानकों के शीर्षक हैं। १. सागरदत्त सेठ २. जम्बू स्वामी ३. धन्ना सेठ ४. कुण्डरीक ५. शालिभद्रजी ६. महात्मा गजसुकुमाल ७. महाराजा उदायी ८. अरणक श्रावक ९. बाहुबली १०. मरीचि ११. भगवान | मल्लिनाथ १२. कपिल ब्राह्मण १३. चित्त मुनि १४. सेठ सुदर्शन १५. अर्जुन माली । -
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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