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________________ चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड ७५५ पुस्तक में दोनों प्राचीन कृतियों का बहुत ही सुन्दर विवेचन हुआ है। तात्त्विक व्याख्या के उदाहरणों एवं सूक्तिपरक उद्धरणों का भी प्रयोग हुआ है। बाद में आत्मा के सम्बन्ध में शब्दार्थ सहित १४ गाथाएँ, बारह भावनाओं का विवेचन एवं आध्यात्मिक प्रार्थनाएँ दी गई हैं। सामायिक में स्वाध्याय करने की अच्छी सामग्री से सुसज्जित यह || पुस्तक निश्चय ही उस समय पाठकों के लिए पूर्णत: उपयोगी एवं प्रेरक सिद्ध हुई होगी। आज भी पुस्तक की उपयोगिता असंदिग्ध है। इसके पुन: प्रकाशन की आवश्यकता है। पुस्तक का सम्पादन श्री रत्नकुमार जी जैन 'रत्नेश' ने किया है। (३) अमरता का पुजारी इस पुस्तक में रत्नवंश के षष्ठ पट्टधर एवं आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के गुरुवर्य पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी महाराज साहब का जीवन-चरित्र है। पुस्तक का लेखन युगमनीषी आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के तत्त्वावधान में विद्वान् पण्डित श्री दुःखमोचन जी झा के द्वारा किया गया है तथा सम्पादन उनके सुपुत्र पण्डित शशिकान्त जी झा ने किया है। पुस्तक का प्रकाशन संवत् २०११ में हुआ। लगभग २०० पृष्ठों में ५७ प्रकरणों के माध्यम से लेखक ने आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. के जीवन का साहित्यिक रूप से सहज एवं प्रभावी रेखांकन किया है। इस पुस्तक पर उपाध्याय कवि अमरमुनि जी म.सा. की टिप्पणी इस प्रकार है ___ "श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के आदरणीय सहमंत्री स्वनाम धन्य पं. मुनि श्री हस्तीमलजी महाराज शत-सहस्रशः धन्यवादाह हैं कि जिनके विचार प्रधान निर्देशन के फलस्वरूप जीवन चरित्र रूप यह सुन्दर कृति जनता के समक्ष आ सकी। सहमन्त्री जी की ओर से अपने महामहिम गुरुदेव के चरणों में अर्पण की गई यह सुवासित श्रद्धाञ्जलि जैन इतिहास की सुदीर्घ परम्परा में चिर स्मरणीय रहेगी।" _ “श्रद्धेय जैनाचार्य पूज्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. के सुख्यात जीवन की पुनीत गाथा के कुछ अंश सुन गया, बड़े चाव से, बड़े भाव से । सुन कर हृदय हर्ष से पुलकित हो उठा। कुछ विशिष्ट प्रसंगों पर तो अन्तर्मन भावना की वेगवती लहरों में डूब-डूब सा गया। विद्वान् लेखक की भाषा प्रांजल है, पुष्ट है और है मन को गुदगुदा देने वाली । भावांकन स्पष्ट है, प्रभावक है और जीवन लक्ष्य को ज्योतिर्मय बना देने वाला है। भाषा और भाव दोनों ही इतने सजीव एवं सप्राण हैं कि पाठक की अन्तरात्मा सहसा उच्चतर आदर्शों की स्वर्ण शिखाओं को स्पर्श करने लगती हैं।" उपाध्याय कवि अमरमुनिजी की टिप्पणी का उपर्युक्त अंश इस पुस्तक के प्रारम्भ में उनके द्वारा लिखित 'अभिनन्दन' से उद्धृत है। आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. का जन्म कार्तिक शुक्ला पंचमी विक्रम संवत् १९१४ को जोधपुर में हुआ था, दीक्षा माघ शुक्ला पंचमी विक्रम संवत् १९२७ को जयपुर में हुई थी, आचार्यपद फाल्गुन कृष्णा ८ वि. संवत् १९७२ को अजमेर में दिया गया था तथा ५६ वर्ष संयम पालने के पश्चात् स्वर्गवास जोधपुर में श्रावण कृष्ण अमावस को वि.सं. १९८3 में हुआ था। ___ आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी म. अनेक गुणगणों से विभूषित थे। परमत-सहिष्णुता, वत्सलता, गम्भीरता, सरलता, सेवाभाविता, विनयशीलता, मर्मज्ञता, आगमज्ञता और नीतिमत्ता ये आचार्य श्री के प्रमुख गुण थे। उनके संबंध में निम्नांकित वचन सत्य था
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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