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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ११४ उधर कांधला से पण्डित मुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी महाराज ठाणा २ से चातुर्मास सम्पन्न कर स्वामीजी की सेवा में दिल्ली पधार गए। लाला बनारसीदासजी, श्री रतनलालजी पारख और मिलापचन्द जी ने आवश्यक उपचार कराया, किन्तु रोग पर नियन्त्रण नहीं हो सका। अन्त में श्री सरदारमलजी सांड के प्रयत्न से जोधपुर वाले गुरांसा उदयचन्दजी की दवा चालू की, जो लाभकारी प्रतीत हुई। उस समय गुरां सा ने ७ दिन दिल्ली रहकर बड़ी तत्परता से सेवा की। ऋतु की प्रतिकूलता और दूरी के कारण उपचार पूरी तरह कारगर नहीं हुआ। आचार्य श्री आत्माराम जी म.सा. का भावपूर्ण आग्रह था कि चरितनायक लुधियाना पधारें तो इन क्रियानिष्ठ साध्वाचार के सजग तप:पूत संतरत्न के पदार्पण से पंजाबवासी भक्तजन लाभान्वित होंगे। चरितनायक की भी भावना उनके दर्शनार्थ जाने की थी। किन्तु स्वामी जी श्री अमरचन्दजी म.सा. का स्वास्थ्य एकदम प्रतिकूल रहने से आगे बढ़ना सम्भव नहीं हो सका। पूज्यप्रवर ने अन्यान्य कार्यों की अपेक्षा सेवा को प्राथमिकता प्रदान की। स्वामीजी भोजराजजी म.सा. की। शासन सेवा एवं उनकी भोलावण भी आपकी सहज स्मृति में थी ही। संघनायक होते हुए भी आपने स्वामीजी महाराज के स्वास्थ्य समाधि हेतु स्वयं सेवाभाव को प्रमुख लक्ष्य रखा। प्रशांतात्मा श्री अमरचन्दजी म.सा. के उपचार में दिल्ली के हकीम हेमराजजी, डॉ. ताराचन्दजी पारख एवं डॉ. लालचंदजी ने पूरा रस लेकर सेवा की । आप शीघ्र ही रुग्ण स्वामी जी महाराज के साथ अलवर, बैराठ, शाहपुरा होते हुए जयपुर पधारे। इस बीच महासती श्री छोटे धनकंवरजी महाराज साहब का माघ शुक्ला षष्ठी संवत् २०१५ को ब्यावर में तीन दिन के संथारे के साथ देवलोकगमन हो गया। कुछ काल पश्चात् फाल्गुन शुक्ला षष्ठी को महासती श्री अमरकंवर जी महाराज साहब का समाधिमरण हो गया। आप संवत् २०१५ का निमाज चातुर्मास सम्पन्न कर महासती श्री धनकुँवर जी म.सा. के दर्शनार्थ ब्यावर पधारे । यहाँ आप ज्वर एवं खाँसी से आक्रान्त हो गए। निरन्तर स्वास्थ्य में गिरावट के कारण आप नश्वर देह को छोड़ कर चल दिए। विक्रम संवत् १९६० में किशनगढ़ के बोहरा कुल में श्री हीरालाल जी के यहाँ जन्मे अमरकँवर जी ने अल्पायु में विधवा होने के पश्चात् महासती राधाजी के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा अंगीकार की थी। चरितनायक लगभग १७ माह मुनि श्री अमरचन्दजी म.सा. की सेवा में जयपुर विराजे । इस दौरान ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत् २०१६ को गुरु भक्त सुश्रावक श्री पूनमचन्दजी हरिश्चंद्र बडेर के यहां से तमिलप्रान्त निवासी वैरागी श्री राम की दीक्षा सम्पन्न हुई, जो मुनि श्री श्रीचन्द जी महाराज साहब के नाम से जाने गये। • जयपुर चातुर्मास (संवत् २०१६) __ संवत् २०१६ के आपके चातुर्मास का सौभाग्य ठाणा ८ से जयपुर को प्राप्त हुआ। आपका चातुर्मास लालभवन में था तथा सरलमना महासती श्री बदनकँवर जी म.सा. आदि ठाणा का चातुर्मास बारह गणगौर के स्थानक में हुआ। जयपुर के लाल भवन में सम्पन्न इस चातुर्मास में आचार्यप्रवर के प्रवचन अत्यन्त प्रभावी रहे। पर्युषण पर्व पर व्याख्यान सुबोध इण्टर कॉलेज के विशाल प्रांगण में हुए। सामायिक सप्ताह का आयोजन हुआ, जिसमें सामायिक-आराधना करने व सामायिक सूत्र के पाठ सीखने-सिखाने की प्रेरणा की गई। अठाई, तेले, आयम्बिल आदि का आराधन पर्याप्त संख्या में हुआ। पर्यषण पर्वाराधन में स्वाध्यायी भाई-बहनों को सन्त-सती विरहित क्षेत्रों में भेजे जाने का व्यवस्थित कार्यक्रम सर्वप्रथम इसी चातुर्मास में बना। इस पुनीत कार्य में जोधपुर के श्री रिखबराज जी कर्णावट ने यथाशक्य प्रतिवर्ष अपनी सेवाएँ देने की भावना व्यक्त की। इसके अनन्तर जयपुर,
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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