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________________ दिल्ली से सैलाना तक (सं. २०१५ से २०१९) • दिल्ली में चातुर्मास (संवत् २०१५) वि.सं. २०१५ का चातुर्मास स्वतन्त्र भारत की राजधानी दिल्ली के सब्जीमंडी क्षेत्र के स्थानक में हुआ। दिल्ली के जिन राजमार्गों से आपका पदार्पण हुआ, वे अपार जन-समूह की जय-जयनाद से गूंज उठे। चातुर्मास के पूर्व आपने दिल्ली के चांदनी चौक, सदर बाजार आदि प्रमुख स्थानों पर जिनवाणी की अमृत गंगा प्रवाहित की। आपकी पीयूषपाविनी पातक प्रक्षालिनी वाणी संयमनिष्ठ जीवन एवं दृढ आचार-निष्ठा से दिल्ली के श्रावक अत्यंत प्रभावित हुए। लाला श्री बनारसी दास जी, मिलापचन्द जी, जीवन लाल जी आदि चातुर्मास की व्यवस्था में तत्पर रहे। आपके तात्त्विक प्रवचनों से श्रोतागण बड़ी संख्या में लाभान्वित हुए। एक दिन हंगरी निवासी बौद्ध धर्म के विद्वान् फैलिक्स बैली जैन सिद्धान्तों की विशेष जानकारी के लिए उपस्थित हुए और स्यावाद के बारे में विशद चर्चा की। आचार्यश्री ने उन्हें बताया “स्याद्वाद जगत् के वैचारिक संघर्षों को सुलझाता है। दूसरे शब्दों में यह वाणी और विचार की अहिंसा भी कहा जा सकता है। एक ही वस्तु या तत्त्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है, इसीलिए उसमें विभिन्न पक्ष भी उपलब्ध होते हैं। सारे पक्षों या दृष्टिकोणों को विभेद की दृष्टि से ही नहीं, अपितु समन्वय की दृष्टि से भी समझकर वस्तु की यथार्थता का दर्शन करना ही इस सिद्धान्त की गहराई में जाना है। किसी वस्तु विशेष के एक ही पक्ष या दृष्टिकोण को उसका सर्वांग स्वरूप समझकर उसे सत्य के नाम से पुकारना मिथ्यावाद या दुराग्रह का कारण बन जाता है। अतः किसी वस्तु को विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर देखने-समझने व वर्णित करने वाले विज्ञान का नाम ही स्याद्वाद है। सिद्धान्तरूप में इसे अनेकान्तवाद या सापेक्षवाद भी कहा गया है।” सर्व साधारण को स्याद्वाद की सूक्ष्मता से परिचित कराने के लिए | भी आचार्य श्री ने दृष्टान्त दिया-"एक ही व्यक्ति अपने अलग-अलग रिश्तों के कारण पिता, पुत्र, काका, भतीजा, मामा और भानजा आदि हो सकता है, किन्तु वह अपने पुत्र की दृष्टि से पिता है तो पिता की दृष्टि से पुत्र, भतीजे की दृष्टि से काका है तो काका की दृष्टि से भतीजा। ऐसे ही अन्य सम्बंधों के व्यावहारिक उदाहरण आप अपने चारों ओर देख सकते हैं। इन रिश्तों की तरह ही एक व्यक्ति में विभिन्न गुणों का विकास भी होता है। अतः यही दृष्टि वस्तु के स्वरूप पर लागू होती है कि वह भी एक साथ सत् -असत्, नश्वर-अनश्वर, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, एक-अनेक, क्रियाशील-अक्रियाशील, नित्य-अनित्य आदि गुणों वाली होती है। द्रव्य की दृष्टि से वह सत् , नित्य, एक, सामान्य आदि होती है तो पर्याय की दृष्टि से उसे असत्, अनित्य, अनेक, विशेष आदि कहा जाता है।” दिल्ली का यह चातुर्मास अत्यन्त ज्ञानवर्धक रहा। लाला श्रीबनारसीदास जी, लाला मिलापचन्द जी, लाला | | किशनचन्द जी , हकीम हेमराजजी एवं स्थानीय श्रीसंघ की सेवाएँ और धर्मानुराग सराहनीय रहा। चातुर्मास में स्वामीजी श्री अमरचन्दजी म.सा. का स्वास्थ्य अधिक नरम हो जाने से चातुर्मास के पश्चात् भी | चरितनायक का यहां से विहार न हो सका। क्षेत्र की अनुकूलता और श्रावकजनों की भक्ति भी सराहनीय रही।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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