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________________ कर इस अवसर्पिणीमें इसी भरतक्षेत्रमें वर्त्तमान चतु विंशतिके तीसरे तीर्थंकर त्रिलोकी नाथ हुये । दीनात्माओं के उद्धारकोमें तो अन्य उदाहरणोंकी आवश्यकता नहीं मालूम देती है । भगवान् तीर्थंकर देवका दृष्टांत पर्याप्त हैं । पशुओंके आक्रंदको सुनकर उनको दया विचार उन दीन दुःखी पशुओंको मुक्त कराकर विरक्त हुए हुए विवाहके रथको तुरत पीछे मोडलेने वाले बालब्रह्मचारी प्रभु श्री नेमिनाथ कुमारकी कुमार कथाको, एक विषधर - सर्प को घोर पाप से बचानेके लिये उसके दृष्टि विष और दंष्ट्रा विष - डंकको सहन करके पंदरह दिन तक भूखे प्यासे एक ही स्थानमें उस आत्माके उद्धारार्थ ध्यानस्थ खडे रहने वले चरम तीर्थंकर प्रभु श्री वीर परमात्माकी वीरचर्याको, मेघरथ राजाके भवमें कबूतरकी रक्षाकी खातर शरणागत वत्सल क्षात्र धर्मके लिये जान कुरबान करने वाले सोलमे तीर्थंकर श्री शांतिनाथ प्रभुके धैर्यको एवं यज्ञमें हवन किये जाने वाले एक घोडेको बचाने के लिये और उस गिरी हुई आ के उद्धारकी खातर एकदम साठ योजनका विहार करके आने वाले बीसमे भगवान् श्री मुनिसुव्रतस्वामी तीर्थकरके उस परोपकार रूप सुव्रतको कौन भूल सकता है ? |
SR No.032336
Book TitleMandavgadh Ka Mantri Pethad Kumar Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansvijay
PublisherHansvijay Jain Free Library
Publication Year1923
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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