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________________ हमारे सपनों के इस नष्टनीड़ की अंतरवेदना हमने इन दोनों आधार - पुरुषों को पुस्तकार्पण करते हुए इन शब्दों में व्यक्त की है अपने 'दक्षिणापथ की साधनायात्रा' में : "सोणां सुकाणां मारां, भाणां भरखाणां मारां, पांखे पांखे तीर परोवाणां, वडवायुं कोणे वींखियुं हो जी ? एजी मारो चकलांनो माळो वखाणो !" सारे सपने चूर हो गए, सारे आयोजन बिखर गए हम दोनों बंधुओं के सद्गुरु चरणों में बैठकर किये हुए जिनालय एवं जैन विश्वविद्यालय निर्माण के, वस्तुपाल - तेजपाल युगलबंधुवत् ! ऐसे महान आदर्श चरितार्थ नहीं हो पाए.... ! हो भी तो कैसे ? जब दो दो वटवृक्षों के मूलाधार ही नहीं रहे..... ! प्रतिकूलताओं के पहाड़ ही पहाड़ खड़े हो गए सर्वत्र उधर हंपी आश्रम पर, इधर बेंगलोर परिवार एवं व्यवसाय में !! " प्रज्ञासंचयन" पुस्तक प्राक्कथन एवं पंडित श्री सुखलालजी एवं पू. माताजी धनदेवीजी के साथ के पत्रव्यवहार इन में यह अंतर्व्यथा-वेदना व्यक्त हुई है केवल अल्पांश में, जब कि अधिकांश में तो वह अव्यक्त ही रह पाई है । - ..... २ - - ऐसी अप्रत्याशित एवं अपरंपार प्रतिकूल परिस्थितियों में तब दो ही आधार रह गए थे दूर अहमदाबाद स्थित पंडितजी का और निकट हंपी विराजित माताजी का इन दोनों ने हमारी गिरती हुई गाड़ी को पटरी पर रखा और सुदूर महाविदेहवास से गुरुदेव सहजानंदघनजी ने अपने सदा के आदेश को सुदृढ़ करते हुए उसे अदृश्य रूप से चलाए रखा । फिर उनकी ही इस अदृश्य सहायता से, परोक्ष होते हुए भी प्रत्यक्ष रूप से हमारा कुछ आयोजन अकेले ही आकार लेने लगा पंडितजी माताजी दोनों पूज्यजनों के मार्गदर्शन में । वास्तव में ईडर पहाड़ पर प्रथम दर्शन में एवं हंपी पहाड़ के प्रारम्भिक पाँच-छह माह के सद्गुरुनिश्रा काल में पूज्य माताजी का जो दिव्य वत्सल मातृरुप गुप्त रूप में हमने देखा था वह अब प्रकट होने लगा और उनका स्वयं का गुरु-विरह हमारे महा-विरह को सम्बल प्रदान करता रहा । माँ का प्रत्यक्ष एवं गुरुदेव का परोक्ष दोनों बल सम्मिलित हुए और विश्वभर को वीतराग- वाणी से अनुगुंजित करने की श्री सद्गुरुआज्ञा- इच्छा कुछ कुछ आकार लेने लगी । गुरुदेव के आदेशित श्री आत्मसिध्धि शास्त्र के प्रथम रिकार्डिंग के मंगलारम्भ से वीतराग-वाणी 'वर्धमान भारती' को पूज्य माताजीने प्रवाहित किया । वात्सल्यमयी माँ के हाथों गुरुदेव के प्रेरित आदेश- कार्य इस प्रकार वर्धमान भारती संगीत रिकार्डों साहित्यकृतियों एवं परमगुरु प्रवचनों के, एक लंबी श्रृंखला के रूप में चल पड़े, विदेशयात्राएँ भी माँ + पंडितजी ने सफल सार्थक बनवायी विश्वभर में वीतरागवाणी भर देने के गुरुआदेश को साकार (xiii) २. " सूख गए सब सपने हमारे, लूट गए भोजनथाल हमारे; तीर पिराए गए पंख पंख पर ...... तोड़ी किसने डालियाँ वटवृक्ष की ?" ( - गुजराती कवि इन्दुलाल गांधी )
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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