SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टापद - रहस्य दर्शन : पू. गुरुदेव द्वारा प्रत्यक्ष अष्टापद-गमन का आँखों देखा हाल (इस परमगुरू - प्रवचन में इस पंक्तिलेखक का स्वयं का पूर्वकथन ) • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • "इस प्रवचन में कुछ अद्भुत, अभूतपूर्व, असामान्य वर्णन है ।.... गुरुदेव नगाधिराज हिमालय की यात्रा पर पधारे प्राचीनतम अष्टापद को खोज निकालने । - में उन " ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ तक तो कलकता के कुछ भक्त यात्री साथ रहे। बाद सभी को विदा देकर, पीछे छोड़कर वे आगे चले "अकेले - आत्मलब्धि द्वारा स्वयं में स्थित होकर... और अदृश्य शक्ति की सहायता लेकर । भीतर में 'सहजात्म स्वरूप परमगुरू प्रभु आदिनाथ' का ध्यान धरते हुए और बाहर में अट्ठम की तपस्या में देहरथ को संजोते हुए !... अंततोगत्वा उन्होंने खोज निकाला मूल अष्टापद !! "उसका आनंदमय वर्णन उन्होंने इस व्याख्यान में गुजराती में किया है ।... यह खोज वर्तमान की दुर्लभ घटना है।" ( अब सुनें गुरुदेव के स्वयं के शब्दों में अष्टापदगमन का रहस्यमय आँखो देखा हाल... ) ( प्रथम दर्शन और अंतस में प्रश्न ) "मणिमंडित समीप के गर्भगृह में प्राचीन और Diamond हीरों की मूर्तियाँ... ! चरण के साथ चरण चिह्न... !! उसकी ( मूर्ति की ) दृष्टि में दृष्टि मिलने पर परिलक्षित हुआ कोटि चंद्र सूर्य का प्रकाश ..... उस मूर्ति में से प्रसारित चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश... !!! "हृदय में एकदम आनंद की लहरें उछलने लगीं... फिर प्रश्न उठता है अपने हृदय में : 'यह क्या ?" ( उत्तर मिलता है ) 'यह तो अष्टापद कैलास !' 'यह कैसे ?' "यह कहते हुए (सूझा कि ) “श्वेतांबर परिपाटि में 'आत्मलब्धि से उसे जो पहुँचे उसे तद्भव मुक्ति' ऐसा कहा जाता है, उस रीति से यह... ( संपन्न ? )" (प्रश्नों के बाद प्रत्यक्ष प्रतीति: दर्शन और प्रदक्षिणा ) "बाद में जो जो प्रश्न उठे वे सारे समा गए । "उसके बाद प्रदक्षिणा में, प्रदक्षिणारूप में घूमते हुए ऐसा ही प्रतीत हो कि "मैं वहाँ ही हूँ ।' " साकार मूर्ति के दर्शन करें तो सारा रत्नमय पाषाणवत्... सारा ही रत्नमय... ! (129)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy