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________________ " बाद में उत्तर श्रेणी में देखा । वे आठ बिंब दर्शित हुए । " इस प्रकार से अभी जो कैलास पर्वत है उसमें भीतर वर्फ़ में यह सारा ( दबा हुआ ) • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा यह दबा हुआ, अजेय, अनारोह्य अष्टापद का विशाल शिखर, अन्य सारे हिमशिखर और हिमालय विस्तार ) "हिमालय कितने विस्तार में है ? १५०० मील का विस्तार है हिमालय का । "उसमें अनेक शिखर हैं : शिखर पर शिखर...... ( उन सब में ) केवल एक ही शिखर ऐसा कि जिसमें चारों ओर ऊँचा उत्तुंग मानो किले (दुर्ग) जैसा, शत्रु ऊपर न चढ़ सके ऐसा विशाल विस्तार है । अभी भी वह वैसा का वैसा ही है । "बर्फ़ में सारा दबा हुआ है... उस पर चढ़ा ही नहीं जा सके ऐसा है... चारों ओर ऐसा ही है..... लगभग ३२ से ४० ( बत्तीस से चालीस ) मील के घेराव में है । "ऐसा... फिर ऐसा... फिर ऐसा... ( संकेत से यहाँ गुरुदेव बताते दिखते हैं प्रवचन में 1 ) " ७ सातवे में ऊपर बाउन्ड्री है.... " पश्चिम में दरवाज़ा है - पश्चिम दिशा की ओर... ( वहाँ ) " ८वा भाग ऊँचा है... ७ वे मंदिर से वहाँ उपर पहुँचने के लिए पायरियां (पद-सोपान ) हैं । ये जो पायरियाँ हैं वे पुराने ज़माने के उस समय के एक माल ( मंझिल ) जैसी हैं । "उसके ऊपर ऋषभदेव भगवान बिराजमान है । "चारों कोनों में दूर दूर चार चार एक श्रेणी से ऊपर एक श्रेणी ऐसी उन पायरियों की भूमिका है । "उनके नीचे दबे हुए हैं १४ जिनालय : चत्तारिअट्ट... " " वे वर्तमान जिनबिंब हैं ।" " फिर आगे बढ़े पूर्वदिशा की ओर...... और वहाँ से दक्षिण दिशा की ओर यह पहुँचता है, वहाँ अनेक स्तुप हैं । ऋषभदेव भगवान के साथ १०८ सिद्ध हुए ( चतारिअट्ठ) उनके कितनेक स्तुप हैं । " पूर्व दिशा में चारों ओर शिखर हैं : छह और छह और छह और छह शिखर हैं । "एक एक शिखर पर शिखर और जिनालय हैं । पूर्व - अतीत चौबीसी... इस रीति से अतीत चौबीसी । (130) इस रीति के वे " फिर पुनः दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ते हुए १०८ ( श्वेतांबर दिगंबर दोनों को मान्य ) “उसी पद्धति से २४ जिनालय ... जिन में ३००... उनमें भरतजी को छोड़कर ९९ बंधु भी वहाँ गए (मोक्ष) ।
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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