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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • द्वार खड़े गजराज दुतर्फा, तरु एक प्रांगण तास; मंदिर चार विदिश उत्तर दिशि, आठ एक पैड़ी पास... चलो. ४ सप्तम तल उत्तर दिशि दश मिल वर्तमान जिन वास; चत्तारि अट्ठ दक्ष दोय मंदिर, अनुभव क्रम यही खास... चलो. ५ सप्तम तक पूरब दक्षिण श्रेणी, चौबीस चौकोर पास; पूर्व अतीत अनागत दक्षिण, दो चौबीसी दुपास... चलो. ६ जिनालय बहतर अरु मुनि, निर्वाण-स्तूप सुनिवास; पराभक्ति सह वन्दत पूजत, सहजानंद विलास... चलो. ७" (सहजानंद सुधा-१४) सन् 1960 में लिखित इस 1943 के महेसाणा चातुर्मास की अद्भुत अनुभूति के पद के पश्चात्क्रम के पत्र में (श्री सहजानंदघन-पत्रावली पत्रांक १३१) उन्होंने 'अष्टापद' संबंधित महत्त्वपूर्ण बात लिखी है। 1943 की इस अष्टापद-दर्शन-अनुभूति के बाद अपने एकाकी गुफावास के दौरान वे स्वयं स्थूलरूप से प्रत्यक्ष अष्टापद-स्थान खोजने हेतु वहाँ गए हैं, जिसका उल्लेख अनेकों के अतिरिक्त श्री बद्रीनाथ-यात्रा संग विजयबाबु बड़ेर आदि को भी उन्होंने किया है। पूज्या माताजी उपरांत श्री विजयबाबु ने प्रत्यक्ष इस पंक्तिलेखक को यह सारा वृत्तांत कह सुनाया था। फिर यहाँ इस पद + पत्र में (किसी जिम्मेदार व्यक्ति के प्रति लिखित ) इस महत्त्वपूर्ण बात में, "अष्टापद-कैलाशभूमि" निकट तीर्थ-निर्माण हेतु उनके द्वारा किए गए प्रयासों का भी स्पष्ट निरूपण दृष्टव्य है : “ 'अष्टापद' तीर्थ विषयक तो धोरा में ही अपनी बात हुई थी और तद्नुसार "कैलास-कल्पतीर्थ" निर्माण विषयक उचित भूमि ढूंढने का भी तय हुआ था । तद्नुसार बद्रीनाथ जाते समय मार्ग में छोटा-सा पहाड़ भी नज़र में आया था, परन्तु वापिस लौटते हुए सारे दृश्य में कुछ परिवर्तन प्रतीत हुआ । फलतः सुनला P.W.D. बंगले की स्थिरता के दरम्यान कोई दिव्य संकेत मिला कि "तीन साल रक जाओ क्योंकि तब तक देश में अशान्त वातावरण रहेगा।" हम चुप हो गए । अब भविष्य में जो होनेवाला होगा वही होगा । उस बंगले के बगल में भी एक पहाड़ साधनालय के योग्य मिला कि जिस पर दिव्य प्रकाश चमक रहा था... और नीचे सड़कें और दोनों बगल में जलस्रोत हैं। समीप में सुरमा की खदान भी है। और भी कुछ विशेषताएँ उस पहाड़ी में हैं जो अनुभवगम्य हैं । उस पहाड़ की उंचाई प्रायः ३५०० फीट की होगी। ऊपर चीड़ वृक्षावली है जिसकी हवा स्वास्थ्यप्रद है। ॐ शांतिः ।" ___ अपने कथित अष्टापद प्रत्यक्षदर्शन अनुभूति विषयक वार्ता का संक्षिप्त संकेत उन्होंने पू. बुद्धिमुनिजी, पं. प्रभुदास पारेख आदि अनेक सुयोग्य जनों को जो किया था उसका उल्लेख उनके 'पत्रसुधा' में संग्रहित पत्रांक २१६ में भी है। परंतु इन सभी से अधिक महत्त्वपूर्ण आधिकारिक (authentic) वर्णन हमें अपने अग्रज आश्रमाध्यक्ष पू. चंदुभाई टोलिया द्वारा रिकार्ड किए गए "अष्टापद रहस्य दर्शन" टेइप में स्वयं गुरुदेव की ही निम्न स्पष्ट आवाज़ में गुजराती में प्राप्त हुआ हैं, जो हमारे पूर्वकथन सह हिन्दी में इस प्रकार व्यक्त है : (128)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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