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________________ . श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . (16) Clo. डॉ. पं. सुखलालजी । सरित् कुंज, आश्रम मार्ग अहमदाबाद-9 16-3-1970, सोमवार पूज्यपाद स्वामीश्री सहजानन्दघनजी, सविनय वन्दना । आपका महा वद 8 का पत्र प्राप्त होने पर बहुत आनन्द हुआ था । आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है ऐसे समाचार चन्दुभाई ने भी लिखे थे। अब आपका स्वास्थ्य कैसा है? शायद वहाँ के प्राकृतिक वातावरण में सहज रूप से ही स्वास्थ्य लाभ हो जाय स्वभाविक है। वहाँ से आप अन्यत्र पधारें तो भी पन्द्रह दिन में एकाध संक्षिप्त पत्र तो लिखने या लिखाने का अनुग्रह करें । आपके आशीर्वाद के लिए सचमुच अत्यन्त अनुग्रहित हूँ। धन्य हुआ हूँ। यह कोई अगम्य संकेत ही है कि उस तरफ आने का संकल्प होते ही एक अन्य उपकारक कार्य भी साथ साथ करने के लिए निमंत्रण आया है और वह कार्य है कृपाळुदेव के वचनों का “Selected Works of Shrimad Rajchandra" के रूप में, प्रकाशन करने का कार्य । सुश्री विमलाताई (जिन्हें आप इडर में मिले थे) के साथ ध्यान शिबिर में चोरवाड़ गया था वहाँ उन्होंने मुझमें कृपाळुदेव के जीवन दर्शन के प्रति आया हुआ रुपांतरण देखकर सानंद यह महाकार्य मुझे सौंपने का सोचा है। ___कुछ मास पहले वे अमेरिका में सान फ्रांसिस्को में थीं तब वहाँ कृपाळुदेव के एक भक्त (श्री भूलाभाई पटेल) उन्हें अपने घर ले गये थे और श्री आत्मसिद्धि की पूजा भी करवाई थी और साथ साथ उन्होंने कृपाळुदेव के वचनों का अंग्रेजी में सुन्दर अनुवाद प्रकाशित करवाने हेतु पचास हजार रुपये खर्च करने की भावना प्रदर्शित की थी। इसके अतिरिक्त श्रीमद् राजचन्द्र शताब्दी मण्डल के प्रमुख श्री त्रिकमलाल महासुखराम-जिनका हाल ही में यहाँ देहान्त हुआने भी ऐसी इच्छा प्रकट की थी । वे भी सुश्री विमलाताई को यह कार्य सौंप कर गये हैं। विमलाताई स्वयं यहाँ के एक-दो अन्य विद्वानों को साथ में लेकर यह मुझे सौंपना चाहती हैं। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ सकती है, क्योंकि पाश्चात्य जगत में अत्यन्त सुन्दर स्वरूप में यह साहित्य पहुँचे - मुद्रण सुन्दर हो इत्यादि हेतु एवं सहायता के लिए अन्य लोगों को रखना पड़े तो उनके लिए भी खर्च करना पड़ेगा । इस कार्य में दो प्रकार से आपकी सहायता मिल सकती है ? (1) कोई धनिक भक्त इस कार्य में आवश्यकता पड़े तो थोड़ी अर्थसहायता कर सकते हैं? (105)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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