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________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 - 26 • महावीर दर्शन - महावीर कथा • (M) (प्रतिध्वनि) "मैं इन सभी संगों से सर्वथा, सर्वप्रकार से भिन्न केवल चैतन्य स्वरूपी ज्ञाता-दृष्टा आत्मा हूँ : विशुध्द, स्वयंपूर्ण, असंग । मेरी यह परिशुध्ध आत्मा ही परमात्मा का स्वरूप है" - "अप्पा सो परमप्पा" । (वाद्य-झंकार) (गान-धून) "सच्चिदानंदी शुध्ध स्वरूपी, अविनाशी मैं आत्मा हूँ।" "भाते आतमभावना जीव पाये केवलज्ञान रे (2)" "आतमभावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे (2)" (वाद्य ध्वनि) और अपनी निःसंग आत्मा का यह ध्यान सिध्ध होते ही प्रस्फुटित होती है उनके वदन पर प्रफुल्ल प्रसन्नता ....और आत्मा में उस सर्वदर्शी, परिपूर्ण, पंचमज्ञान - केवलज्ञान और केवलदर्शन की ज्योति (दिव्य वाद्य संगीत .....) (सूत्रघोष) ॥ जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ ॥ निर्ग्रन्थ महावीर अब रागद्वेषादि की सब ग्रंथियों को सर्वथा भेदकर बन चुके हैं आत्मज्ञ, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग, अरिहन्त तीर्थंकर भगवंत ... उनके दर्शन और देशना - उपदेश - श्रवणार्थ - देवों के विमान उड़े, मानवों के समूह उमड़े, पशुओं के झुंड (वृंद) दौड़ें, दिव्य समवसरण खड़े हुए, अष्ट प्रतिहारी सेवा में चले, दिव्य-ध्वनि एवं देवदुन्दुभि के नाद गूंज उठे ... (M). और प्रभु ने अपनी देशना में प्रकाशित किया - (प्रतिध्वनि) "जीव क्या ? अजीब क्या ? आत्मा क्या, कर्म और कर्मफल क्या ? लोक क्या - अलोकक क्या ? पुण्य-पाप क्या ? सत्य असत्य क्या ? आश्रव संवर क्या ? बंध निर्जरा-मोक्ष क्या ?" एगो मे सासओ अप्पा, नाण दंसण संजुओ।" "सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग लक्खणा ॥" ज्ञानदर्शन युक्त शाश्वत आत्मा ही एक मेरी है, बाकी तो सारे बाह्यभाव हैं, जो परिस्थिति-जनित हैं।" फिर तो लगातार ऐसे अनेक विषयों की अनेक देशनाओं के द्वारा, बहुतों को तारनेवाला उनका धर्म-तीर्थ-प्रवर्तन भारत की धरती पर अखंड चलता रहता है। आचार में करुणा, अहिंसा, संयम, तप, दर्शन और चिंतन में स्याद्वाद-अनेकांतवाद एवं धर्म में सर्वविरति - देशविरति या पंच महाव्रत - बारह अणुव्रत से युक्त, निश्चयव्यवहार के संतुलनवाले, सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्र के इस तत्कालीन और सर्वकालीन प्रवर्तनक्रम में चतुर्विध संघ बना । (26)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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