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________________ Second Proof DL.31-3-2016-25 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . अन्यथा ऐसे घोर कष्ट, परिषह और उपसर्ग वे कैसे सह सकते थे ? और फिर ध्यान-लीन महातपस्वी महावीर विहार करते करते कौशाम्बी नगरी में पधारे, जहाँ प्रतीक्षा कर रही थीचन्दनबाला ... बड़ा अद्भुत है इतिहास इस राजकुमारी का, वैशाली नगरी में बेची गई एक नारी का । ग्रंथ गवाह है - पांच माह पच्चीस दिन के उपवासी भविष्यदर्शी महावीर का यह अभिग्रह था कि (प्रतिध्वनि)"जबतक एक उच्च कुल की फिर भी कर्मवश दासी बनी हुई, मुंडित केश, बंदी शरीर और रोती हुई आंखोवाली अबला हाथों में उड़द लिये भिक्षा देने द्वार पर प्रतीक्षा करती न मिले, तब तक वे किसीसे भिक्षा नहीं लेंगे।" वही नारी थी(F) (गीत) (राग-मिया मल्हार, मिश्र, बसन्त, त्रिताल) "चन्दनबाला ! ..... तेरा अद्भुत है इतिहास ।" इस इतिहास के पृष्ठ पृष्ठ पर (F) प्रगटे दिव्य प्रकाश ... ॥ चन्दनबाला ....। एक दिन थी तू राजकुमारी, राजमहल में बसनेवाली दासी होकर बिक गई पर, बनती ना उदास ... ॥ तेरा... चन्दनबाला ... । दुःखों का कोई पार न आया, फिर भी अड़िग रही तुज काया । कर्म (काल) कसौटी करे भयंकर, फिर भी भई न निराश ॥ तेरा... चन्दनबाला ..... । वीर प्रभु को दे दी भिक्षा, प्रभु ने भावी में दे दी दीक्षा। श्रध्धा के दीपक से दिल में (F) कर दिया दिव्य प्रकाश ॥ तेरा... चन्दनबाला ..... । और उन अनेक उपसर्गों की कतारों को पार करते करते ध्यानमस्त तपस्वी महावीर अपने निर्ग्रन्थ जीवन के साड़े बारह वर्षों के पश्चात् ... एक दिन .... आ पहुँचे अपनी उद्देश्य-सिध्धि, अंतिम आत्मसिध्धि के द्वार पर ... (दिव्य मंद ध्वनिः वायब्रो) (अति भावपूर्ण स्वर) वह ढ़लती दोपहरी ... वह जृम्भक ग्राम ... (शब्दचित्र) वह ऋजुवालुका नदी ... वह खेत की श्यामल धरती ... और वही शाल का वृक्ष ..... ! (F) इसी ... बस इसी वृक्ष के नीचे, गोदाहिका आसन में पराकोटी के शुक्ल ध्यान में लीन निर्ग्रन्थ महावीर ... ! आत्मध्यान के इस सागर की गहराई में उन्हें यह स्पष्ट, पारदर्शी अनुभूति हो रही है कि - M) (25)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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