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________________ Second Proof DL. 31-3-2016.27 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . उस समय के संघ में साधुओं में प्रधान थे गणधर गौतम स्वामी, साध्वियों में आर्या चन्दनबाला, श्रावकों में आनंदादि एवं श्राविकाओं में रेवती, सुलसा इत्यादि विदुषियाँ। उस युग की, देश और काल की, धर्म और समाज की समस्याएँ थीं - ब्राह्मण-शूद्र, जाति-पाति - (M) ऊंच-नीच ओर पीडित नारी - दम्भ, पाखंड, हिंसा, पशुबलि - (M) अंधाग्रह और झूठ की जाली थोथे क्रियाकांड और जड़भक्ति - (M) संक्षेप में, बाहरी पुद्गल पदार्थों में आत्मबुध्धि ! भगवान महावीर के पास इन सभी समस्याओं का समाधान था,सभी रोगों का उपचार था, सभी के प्रश्नों का जवाब था - ... (गीत) (F) "गौतम जैसे पंडितों को सत्यपंथ बतलाया । श्रेणिक जैसे नृपतियों को धर्म का मर्म सुनाया। रोहिणी जैसे चोर कुटिलों को मुक्ति का मार्ग दिखाया, मेघकुमार समान युवानों को जीवन मंत्र सीखाया" (००००० वाद्य संगीत ०००००) (गीत) (M) "एक दिन पूर्व का शिष्य गोशालक, प्रभु को देता गाली। मैं सर्वज्ञ महावीर जैसा - कह के चली चाल काली ॥ तेजोलेश्या छोड़ के उसने चेताई आगी की ज्वाला; वीर के बदले खुद ही उस में जलने लगा गोशाला ॥" (सूरमंडल) गंगा के निर्मल नीर जैसी उनकी वाणी में अपूर्व संमोहन था, जादु था, अमृत था, अनंत सत्य का भावबोध था - | (गीत) "अनंत अनंत भाव भेद से भरी जो भली, अनंत अनंत नय नि | (राग केदार) व्याख्यानित है। सकल जगत हित कारिणी हारिणी मोह, तारिणी भवाब्धि मोक्षचारिणी प्रमाणित है ॥" (००००० वाद्य संगीत परिवर्तन ०००००) (गीत) "गंगा के निर्मल नीर-सरिखी, पावनकारी वाणी (बानी); घोर हिंसा की जलती आग में, छिटके शीतल पानी । उनके चरन में आकर झुके, कुछ राजा कुछ रानी; शेर और बकरी वैर भुलाकर, संग करे मिजबानी ॥" (सूरमंडल) (27)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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