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________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018 - 66 • महासैनिक • पत्रों में लिखे जा रहे मेरे लेखों-निबन्धों ने कई प्रशस्ति-पुरस्कारादि प्राप्त कराना प्रारम्भ कर दिया था। बापू एवं श्रीमद्जी जैसे दोनों महामानवों के अंतजीवन के निकट मुझ जैसे एक अबोध बालकुमार को कैसे लाकर रख दिया था यह सब तो एक आश्चर्यवत् 'अकथ कहानी' थी ! इस भूमिका के जरिये तो भविष्य में विशाल स्तर पर कुछ अधित्य घटित होनेवाला था !! बापू-बाबा-बालकोबा से निसर्गोपचार-निल एवं श्रीमद् राजचन्द्रजी के परोक्ष जीवन-दर्शन से उनके ही प्रत्यक्ष प्रतिनिधिवत् पांच पांच प्रेरणादाताओं की परमोपकारक प्राप्ति होने वाली थी। ये पांचों प्रत्यक्ष उपकारक सर्व प्रातः पूज्य प्रज्ञाचक्षु पं. श्री सुखलालजी, आचार्य गुरुदयाल मल्लिकजी, सुश्री विमलाजी, योगीन्द्र श्री सहजानंदघनजी एवं आत्मदृष्टा माताजी धनदेवीजी - अन्यों के अतिरिक्त, प्रमुखरूप से इन सभी के द्वारा अनेकविध श्रीमद्- साहित्य-संगीत-ध्यानस्वाध्याय-शिबिरादि व्यापक निर्माणों हेतु इस अल्पज्ञ लेखक को "निमित्त", "माध्यम" बनाया जानेवाला था । अनागत भावी के गर्भ में गुप्त रहे हुए इन महासर्जनों के बीज यहीं से बोये गये थे । ये सारे उन दिनों के पश्चात् 1967 से लेकर इस 2017 तक के पचास वर्ष के काल-खंड के बीच 52 बावन जितने महा-निर्माणों के रूप में, आद्यान्त गुरुकृपा से, श्रीमद् राजचन्द्रजी की 150वी जन्मशताब्दी तक एक वटवृक्षवत् अंकुरित और नवपल्लवित हो चुके हैं - एक चमत्कार-सी, निरंतर बह रही इस गुरुकृपा के सातत्य के परिणाम स्वरूप इस अल्पात्मा को एक "निमित्त" मात्र, एक "कृपाकिरण" बनाकर ! पूना की पंद्रह दिन की जनवरी 1946 तक की बापू-निश्रा छोड़कर, बाद में पूना शहर भी 1946 के जुन माह में छोड़कर जन्मभूमि अमरेली आना हुआ परिवार सह। वहाँ फिर 30 जनवरी 1948 के गांधी बापू के करुण देहावसान ने मेरा अंतर्वैराग्य इतना तो और बढ़ा दिया कि निकट के कोई परिजन - गुरुजन छात्रमित्र वह जान नहीं पाये । गाता-गुनगुनाता रहा गायक कविमित्र श्री चन्द्रकान्त मुलाणी (शिहोर) का करुणतम विरह-विदा गीत “આથમતી એક સાંજને ટાણે, બાપૂએ વિદાય લીધી હતી; ને દિ'મારા ભગ્નહ્રદયે આ એક ધૂન જગાવી હતી : હે રામ ! હે રામ !'' इसी गान- धून में साथियों को, अमरेली नूतन विद्यालय के, ( कि जिसे हमने तब महात्मा गांधी विद्यालय नामाभिधान कर दिया था ) पू. आचार्य श्री मुलाणी साहब, आदर्श अध्यापक पू. सवाणी "बापू" आदि को जोड़ा विद्यालय में "बापू कुटिर " बनवाई। गांधीभस्मकुम्भ यहाँ स्थापित कर नित्य प्रार्थना सभाएँ करते रहे । पश्चात्काल में पूज्य पिताजी ने अमरेली में करवाये हुए प्रथम उपकारक जैनमुनि श्रीमद्जीआनंदघनजी - अध्येता आत्म-मस्त श्री भुवनविजयजी के एवं स्वयं परिशोधित गांधीप्रभावित मुनिद्वय श्री संत बालजी नानचंद्रजी 'संतशिष्य' के सत्-परिचयों ने मेरे वैराग्यभाव संयम साधना तथा श्रीमद् गांधीनिष्ठा को अभिवर्धित किया । तत्पश्चात् मेरी विद्या साधना गुरूकुलवासों, भारत भ्रमण सत्संग यात्राओं, सर्वोदय भूदान-पदयात्राओं के दौरान बालकोबाजी, बाबा विनोबाजी, संगीत गुरु 'नादानंद' बापूरावजी (हैदराबाद, आं.प्र.), चिन्नम्मा माताजी (रेपल्ली), प्रज्ञाचक्षु डो. पंडितश्री सुखलालजी, (66)
SR No.032329
Book TitlePuna Me15 Din Bapu Ke Sath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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