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________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018 -65 • महासैनिक . "बहुत बहुत आभार" कहकर किताब लेकर बड़े आनंदित होकर हम दोनों मित्र उस दिन बिदा हुए थे। नियति की भी कैसी आयोजना कि इस बापू-निश्रा के बाद मेरे जीवन में निसर्गोपचार-निष्ठा के उपरान्त श्रीमद् राजचन्द्रजी का सुदीर्घ प्रवेश होनेवाला था। कुछ अप्रत्याशित, आकस्मिक घटनाएं मेरे निकट भविष्य में घटनेवाली थीं। इन घटनाओं में 7 अप्रैल 1946 के, विद्यालय-सहाध्यायिनी कु. रंजन के टाइफोइड में अचानक असमय देहावसान ने एक ओर से मुझे भगवान ऋषभदेव के जीवन के नीलांजना के असमय देहावसान-जनित वैराग्यभाववत् अपने विद्याभ्यास के बीच बड़ा वैराग्यवासित बना दिया। तो दूसरी ओर से तत्पश्चात 21 अक्तूबर 1946 के अपने देहजन्म दिन पर परम उपकारक पूज्य पिताजीने मुझे अकल्पित ताना मार कर, एक झटका देकर इस भीतरी वैराग्यभाव को अभिवधित कर दिया ! उन्होंने गांधी बापू के, मेरे, सभी के महान उपकारक ऐसे श्रीमद् राजचन्द्रजी के महाजीवन में, अनजाने में, एक भावी संकेत रूप मेरा आजीवन प्रवेश करा दिया : "देख ! इस महापुरुष ने तुम्हारे जैसी इस 16 सोलह वर्ष की छोटी-आयु में केवल तीन दिन में ही यह अद्भुत किताब 'मोक्षमाला' लिख डाली है !! जीवन में तुम क्या करोगे? तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें यह मूल्यवान भेट दे रहा हूँ। इसे गहराई से पढ़कर और अपनाकर अपने जीवन में कुछ कर जाओ !!!" "बड़ा भारी उपकार आपका, पिताजी ! आज मैं धन्य हुआ। ज़रूर कुछ करके रहूँगा'..." विनयपूर्वक यह कहकर, किताब पाकर मैं आनंद विभोर हो उठा। पूज्य पिताजी ने, कि जिन्होंने मुझे बालपन से ही इसी पुस्तक के लेखक श्रीमद्जी के अनेक मधुर पद स्वयं गा गाकर वत्सलप्रेम से सिखलाये थे, उन्हीं के इन प्रेरक उपालम्भ-से उपकारक शब्द-बाणों ने तभी से मेरा जीवन बदल डाला। उसी समय वतन अमरेली के उस सॅनॅटोरियम से सीधा राजमहल-उद्यान एवं बाद में स्मशान - दोनों एकान्त स्थानों पर जाकर उसी, एक दिन में ही बड़े भावोल्लास सह संपूर्ण मोक्षमाला' को पढ़ लिया। सचमुच ही उस महाग्रंथ के जादुभरे अमृतवचनों से जीवन शीघ्र ही पूरा परिवर्तितरूपांतरित होने लगा।तत्काल ही कई साधनाएँ प्रारम्भ हो गई-प्रथम रात्रिभोजन त्याग एवं कंदमूलादि अभक्ष्य सर्व त्याग से लेकर सप्तव्यसनत्याग तक । स्वाध्याय का और लेखन का चाव बढ़ गया। राज-पद गान अधिक गूंज उठे। पढ़ना-लिखना-गाना एक धुनवत् चला । सहाध्यायिनी रंजन की आकस्मिक, असमय मृत्यु से, जो कि जीवन में देखी गई प्रथम 'अकाल-मृत्यु' थी, भीतर में वैराग्य निष्पन्न हो चुका था और उसके पूर्व बापू के सहवास और डो. दिनशा द्वारा बापू की 'आत्मकथा' के प्रदान ने जीवन में एक आदर्शवत् हलचल तो मचा ही दी थी- इन घटनाओं के पश्चात् इस महा-उपकारक 'मोक्षमाला' के पिताजी के द्वारा किये गये अद्भुत, अपूर्व प्रदान ने तो जीवन में, बाह्यांतर जीवन समग्र में क्या क्या, कैसे कैसे परिवर्तन ला दिये थे!'जैन सिध्धान्त' आदि मासिक (65)
SR No.032329
Book TitlePuna Me15 Din Bapu Ke Sath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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