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________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018 -67 • महासैनिक . आचार्य गुरुदयाल मल्लिकजी, विदुषी विमलाताई, आदि अनेक उपर्युक्त उपकारक संतजनों ने मेरे 1952 के उपकारी पितृवियोग के विरहदुःख को भी ऊर्वीकृत बनाकर मेरी वैराग्य साधना + श्रीमद्जी प्रणीत आत्मसाधना-जीवनसाधना को वृद्धिगत कर दिया "अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे?" के परमपद-प्राप्ति की भावना को बल देकर । परमकृपाळुदेव श्रीमद्जी निर्दिष्ट "युवावय का सर्वसंग-परित्याग परमपद को प्रदान करता है।"- इस सूत्रानुसार सर्वसंग-परित्याग तो कर नहीं पाया अपने अल्प पुरुषार्थ के कारण, परंतु उसकी अंतर्भावना अंतस्-अभीप्सा निरंतर बनी रही । युवावय के इन १६-१८-२० वर्षों के पश्चात् के प्रायः ७० वर्षों के समग्र काल के विशाल अंतराल में घटित जीवन की, बाबा प्रेरित अहमदाबाद में 20-12-1958 के दिन बीस हज़ार बालकों के ॐ तत्सत् समूहगान निर्देशन, आदि कई विशद घटनाओं का क्या वर्णन-आलेखन करें? सर्वत्र छाये हुए उपर्युक्त सत्पुरुषों के उपकारक सत्समागम के पश्चात् महत्त्वपूर्ण उपसर्गो-अग्निपरीक्षाओं के दौरान भी उनके अपार उपकारों का भी क्या निरुपण करें? उन सबके पावन समागमों के बीच अध्ययन-अध्यापन के दौरान, क्रान्तिकार अनुज कीर्ति के युवावय के करुण असमय देहावसान के दौरान, पूज्य मल्लिकजी द्वारा सूचित जीवनसंगिनी सुमित्रा सह उन्हीं के पवित्र सान्निध्य में गांधीआश्रम साबरमती अहमदाबाद में 15 अगस्त 1960 को आश्रम-विधि अनुसार गुहस्थाश्रम प्रवेश-सर्वसंग परित्याग के स्थान पर-के समय, फिर अन्य कॉलेज अध्यापनों-आचार्यपद कार्यों के संघर्षों के बीच,अंत में बापूसंस्थापित गूजरात विद्यापीठ के चिरस्मरणीय अध्यापन सेवाकार्य काल में दांडीयात्रा, शांतिसेनादि में सहभागी बनना और 'महासैनिक' शीर्षक श्रीमद्जी-गांधीजी विषयक निराले नाटक को लिखकर उस पर सर्व भारतीय श्रेष्ठ पुरस्कार प्राप्त करना, बाद में विद्यापीठ, अहमदाबाद त्यागपत्र देकर (मध्य में पू. गुरुदयाल . मल्लिकजी के अप्रैल 1970 में देहत्याग बाद) बेंगलोर-हंपी-कर्नाटक के श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम पर स्थानांतरिक होकर वहाँ श्रीमद्जी तत्त्वाधारित जैन विद्यापीठ-जिनालयादि का आयोजन करना, फिर वहाँ के आश्रमाध्यक्ष अग्रज पू. चंदुभाई एवं आश्रम स्थापक योगीन्द्र श्री सहजानंदघनजी दोनों के अचानक असमय देहत्याग से दो बड़े वज्राघात पाकर भी उस आश्रम अधिष्ठात्री आत्मज्ञा पू.माताजी . के आदेश-आशीर्वादों से श्रीमद्जी-रचित "श्री आत्मसिध्धि शास्त्र" का सर्वप्रथम चिरंतन रिकार्डिंग करना और वर्धमान भारती के जिनभक्ति संगीत रिकार्ड-श्रृंखला को चलाना, सुश्री विमलाताई के संरक्षण से 'सप्तभाषी आत्मसिध्धि' ग्रंथ-संपादन करना, १२ बारह विदेशयात्राओं में ध्यान-संगीतस्वाध्याय-प्रवचनादि त्रिविध प्रवृत्तियों के द्वारा सद्गुरु-आदेशित श्रीमद्-वाणी-वीतराग-वाणी को विश्व-अनुगुंजित करना..... आदि आदि सुकार्य तो एक चमत्कार-श्रृंखलावत् सभी परमगुरु अनुग्रह से चलते आये, साकार बनते रहे हैं। सब कुछ ही आश्चर्यपूर्ण, बड़े ही आश्चर्यपूर्ण दिव्य प्रतिफलन रूप में !! इन सारे घटनाक्रमों के बीच फिर क्रान्तिकार अनुज कीर्तिकुमार (1959), स्वप्नदृष्टा उदार उपकारक अग्रज पू. चंदुभाई (1970), मेघावी ज्येष्ठा सुपुत्री कु. पारुल (1988), उपकारक जन्मदात्री पू. माँ अचरतबा (1979) इत्यादि सभी स्वजनों के प्रायःअनपेक्षित असमय के देहावसानों ने अंतर्वेदना (67)
SR No.032329
Book TitlePuna Me15 Din Bapu Ke Sath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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