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________________ (लेखांक - 1) ॥ ॐ अर्हम् नमः॥ वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउन्डेशन रजत जयंती के उपलक्ष में वर्तमान - युगीन महती आवश्यकता - आयोजना जिनाराधक वास्तूग्राम जैन आवास/ जैन ग्राम जैन आश्रमिक आवास जैन आराधक आवास * नगर मध्य अनेक स्थानों में * नगर बाहर तीर्थस्थानो में * - प्रा. प्रतापकुमार टोलिया “अहमिको खलु शुद्धो, निर्मल ज्ञान दर्शन विशुद्धो न विअस्ति मम किञ्चित् एक परमाणु मित्तंपि॥" (जिनवचन)* ___ एक परमाणु मात्र की भी संस्पर्शना से रहित ज्ञान दर्शनमय आत्मा की विशुद्ध, असंग, एकाकी अवस्था की संप्राप्ति वीतरागप्रणीत जिनमार्ग का गन्तव्य है, चरम लक्ष्य है। आत्मा की इस लक्ष्यभूत अवस्था की उपलब्धि संकल्पजन्य 'उपादान' कारण के उपरान्त परिस्थितजन्य 'निमित्त कारण पर भी अवलंबित आधारित है - विशेषकर सर्वसामान्य आराधक आत्माओं के लिये। इन निमित्त कारणों में वातावरण, पर्यावरण, बाह्य परमाणुग्रसित परिस्थिति का संस्कार निर्वहन, जैन संस्कार निर्माण के अनुकूल होना अत्यन्त आवश्यक है। __ वर्तमान युगीन विश्रृंखलित, विक्षुब्ध, विलासपूर्ण एवं विकृतिमय विध्वंसक अवस्थाओं में यह संस्कार - संरक्षक - संवर्धन अत्यन्त सजगता की अपेक्षा रखता है। संस्कार - निर्वहन की इस प्रक्रिया में व्यक्ति एवं समष्टि के आवास स्थान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। * प्राकृत पाठभेद: "अहमिक्को खलु सुद्धो, णिम्ममओ णाणदंसणसमग्गो। तम्हि ठिओ तच्चित्तो सव्वे एए खयंणेमि॥" - समणसुत्तं : 192 - 15 (पृ.60) अर्थात् मैं एक हूँ, शुद्ध हूँ, ममता रहित हूँ तथा ज्ञान-दर्शन से परिपूर्ण हूँ। अपने इस शुद्ध स्वभाव में स्थित और तन्मय होकर मैं इन सब परभावों - परपरमाणुओं का क्षय करता हूँ। जन-जन का उवास्त जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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