SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसे “वास्तुसार प्रकरण" नाम से, सौराष्ट्र के पादलिप्त पुर (पालीताणा) निवासी पंडित भगवानदास ने अनुवादित किया है । आशीर्वाद एवं अनुमति प्रदाता वर्तमान जैनाचार्य की प्रशस्ति कवि मनीषी, शिल्प स्थापत्य पुरस्कर्ता राष्ट्रसंत आचार्यश्री जयन्तसेनसूरीश्वरजी ने न केवल यह ग्रंथ वर्तमान संशोधक संपादक - अनुवादक को सौंपकर स्वपर हिताय पुनर्प्रकाशित करने प्रेरणा और आशीर्वाद दिये, अपितु वर्षों पूर्व उसके अपने बेंगलोर के मूल निवास पर भी स्वयं पधारकर वास्तुदोष परिहारादि मार्गदर्शन प्रदान किया। इस पावनस्मृति के साथ उनका कृतज्ञ अभिवादन करते हुए हम अन्य प्राचीन अर्वाचीन वास्तु ग्रंथों से, अधिकतर जैन वास्तु ग्रंथों से प्रेरणा और आनंद प्राप्त कर "स्वान्तः सुखाय, सर्वजन हिताय च " यह ग्रन्थ, अनेक स्थानों पर कुछ संक्षेप करके आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत कर धन्य हो रहे हैं। आशा है सभी को यह प्रयास उपयोगी, उपादेय होगा । - जन-जन का - 27.04.2009 वै.शु.३, सोमवार बेंगलोर - - 87 - · प्रतापकुमार ज. टोलिया - सुमित्रा प्र. टोलिया 'पारुल' 1580 कुमारस्वामी ले आउट बेंगलोर - 78
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy