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न बनावे, पति अने पत्नीमा झगडा थाय छे, पतिने अनुकूळ पोतानो स्वभाव के पत्नीने अनुकूळ स्वभाव अपनावी ले तो झगड़ा न थाय ! आ तो बने वटमां रहे ' मारी वात', तो कहे ' मारी वात.' तो ए कंइ मेळ खाय : वहेवारनी अंदर पण आपणे साथे रहेता होइए तो एकबीजाना स्वभावने अनुकूल रहेवुं जोइए. तेम आना पोताना चैतन्य साम्राज्यमां पण जो आत्मवैभवनो अनुभव करवो होय तो एने अनुकूल रहेतुं जोइए. एनुं नाम स्वभाव.
तो स्वभावने पकडो. भावोने छोडीने, परभावोने छोडीने स्वभावने पकडो. परिस्थितिने बदलवाथी, केवळ परिस्थितिने बदलवाथी, कंह आत्मशुद्धि थवानी नथी. साधु बनी गया, जंगलमां गया, त्यां बेठा, तेथी करीने थइ जवानुं छे ? गमे एटली बदलीओ करो - वेशनी, देशनी अने क्रियाकांडनी. पण ज्यां सुधी भावोमां परिवर्तन नथी थयुं त्यां सुधी ए बहारनुं परिवर्तन आत्म शुद्धिमां काम आवतुं नथी. अने जो आ भावोमां पहेलाना जे अज्ञानदशाना भावो हता, ज्ञानीओना सत्संग वडे परिवर्तित करी दीघा, बदली नांख्या, परभावाने स्वभावर्मा बदली नांख्या तो पछी गमे त्यां रहो.
" मन हाथ पड्यो जिनको, तिनको
न ही घर है, घर ही वन है...."
मन हाथमें आ जाना चाहिए । उसकी कुंची स्वरूप जाग्रति है । सबसे पहले यह काम करनेका है । आत्मा का