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ज्ञान अने मोक्ष थाय एम एवी एकांतिक वात नथी. घरमां य ज्ञान थाय छे; अने नहीं तो जंगलमां य नथी थतुं ! पण " आत्मामां " थाय छे. जेने थाय छे ते अंतर्गुफाभां प्रवेश करे तेने थाय छे. एटले सतत स्वरूप जागृतिए रहेवुं ए सत्पुरुषार्थ छे ते कुंची छे. सतत स्वरुप जागृति : सतपुरुषार्थनी कुंची :
जे पांच कारणो बताव्या काळ, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत अने पुरुषार्थ – एमां पांचमां एक पण ओछु होय तो काम न थाय. भाग्यमां न होय, कूवौ खोदे. वरसाद नथी. बे वरसथी दुकाळ छे कच्छमां के राजस्थानमां. तो जे ठेकाणे कूवो खोदे, भले गमे तेली महेनत करे, पण पाणीनो झरो नीकळे ज नहीं अने भाग्यशाळी होय तो थोडामां ज नीकळी आवे छे. भाग्य जो पाधरा होय तो नीकळी आवे छे, अने भाग्य नबळां होय तो ? छतां मुख्यता पुरुषार्थनी छे. सत् पुरुषार्थ - साचो निर्णय करीने मंडी पडे तो, भाग्य नामना अजिन वडे खेचाती गाडीने पाछळ धक्को मारे ऊंचे चडवाने माटे एवं एंजिन जोडी काढे तो उन्नतिना शिखरे जइ पहोंचे छे. एक एंजिनथी गाडी समतल भूमिमां तो चाले, पण तमे खंडालाना घाटमां आव्या त्यां बीजं एंजिन जोडायुं ? एटले भाग्य - पूर्वकृत अने पुरुषार्थ - एनी साथे साथे आ त्रण - ए बधां मळींने पांच समवाय कारणो कहे छे. समवाय तंत्र कारणो छे. ए पांचेनी अनुकूळताए कार्यसिद्धि थाय छे, समजायुं ? बाकी एकलुं भाग्य के एकलो पुरुषार्थ करशे शुं ? स्वभावने अनुकूल
समवाय
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