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________________ जे जोनार जाणनार ते हुं छु, आ नहीं." ओ भान राखवा जाओ अटले लक्ष्य क्यां रहेशे ? माहें, अंतर्लक्ष्य काम करतुं रहेशे. आत्मलक्षनी पकड : सौराष्ट्र, राजस्थान, कच्छमां जे पाणी भरवा जाय छे ते. एक, बे अने त्रण त्रण बेडां माथा उपर होय, हाथ हेठा होय, वातो करती अने हसती हसती चालती जाय. पण लक्ष्य क्या होय छे ? तेम ज तो लक्ष्य माहें राखवानुं छे, माह्य, जे जाणनार छे छे ने जोनार छे तेमां ज. ते कोण ? एमां लक्ष्य राखीने तप, जप अने क्रियानो खप करो, बधुं सफळ छे, एमां लक्ष्य जमाव्या वगरनुं बधुं विफळ छे. मेरु जेटला संयमना उपकरणो जीव वापरी नांखे, छतां पण मोक्ष थाय नहीं, केवळज्ञान थाय नहीं। एटले आजे आ उपादान-लक्षीय, विधेयात्मक जे आत्मानुं भान, तेनी कायमी स्मृति, ते आत्मानुं लक्ष्य, एने पकडवामां, ए भणी वलण वधारवामां साधकीय लक्ष जोवामां आवतुं नथी ! बहारनी दोडी आत्मानुं कशुं वळवार्नु नथी. एटले सत्पुरुषार्थमां सत् ने अनुलक्षीने, स्वभाव जागृत करीने, एवो अफर निर्णय करीने अने ए मंडयों रहे तो भूतकालीन पुरुषार्थना फळ स्वरुपे जे परिस्थितिओ सामे छे तेमांथी पसार थतो छतो ए आनंदघनमूर्तिपणे ज पोताने अनुभवें छे. बहारनां कष्टो एने नङतां नथी. मान्यता हती भूलभरेली ए छोडी दीधी. मान्थता बदली दीधी. हवे हुँ पुरुषे य नहीं अने स्त्री
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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