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________________ ये नहीं; पति य नहीं अने पत्नी य नहीं, भाइ नहीं अने भगिनी नहीं. वाणियो नहीं अने ब्राह्मण नहीं. मनुष्य नहीं ने पशुपक्षी नहीं. हुं तो आत्मा छु ! “ सहजात्मस्वरुप परमगुरु.” परमगुरु जेवो, परमगुरुए जेवो पोतानो आत्मा जोयो, जाण्यो, अनुभव्यो तेवो ज हुं सहजात्मस्वरुप छु, शरीरस्वरुप नथी. धर्म एटले मननी धरपकड : आ आत्माना भानपूर्वक जे रहेशे ते मुसलमान हशे तो य तरशे, इसाई हशे तो य तरशे अने नहीं हशे भान तो जैन के शैव के कोइ तरवाना नथी. आ वाडा ठीक छे, संरक्षणरुपे सदाचार परिपाटीमां आ जीवने राखे छे, पण तेथी आगळ कंइ करवानुं बाकी छे. तो केवळ बाह्य क्रियाओ, बाह्य तप जप आदि अंतर लक्ष्य-शून्य थइने जेओ करे छे ते दयापात्र छे. एमने पल्ले पडवानुं नथी. पुण्यना ढगला कमाइ शकशे, पण 'धर्म 'ना ढगला एने हाथ नहीं आवे. “पुण्य" अने "धर्म" अलग छे. पुण्य तो सोनानी बेडी छे अने पाप ए लोढानी बेडी छे, अने "धर्म" ए बने प्रकारनी बेडीओथी भिन्न एवी आझादी छे. कोइ गायना गळाभां सोनानी सांकळ बांधीने खींटे बांधीए अने एक बीजी गायने लोढानी सांकळे बांधीए. जेना गळामां सोनानी सांकळ हशे ए पोताने एम मानशे के “हु शेठाणी छु ? केटली सुखी छु !" मानशे ? बने एक समान पराधीनपणुं अनुभवती हशे. एने सोना अने लोढामां कोइ फरक नथी, बंधन छे बने प्रकारनां. बंधनथी
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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