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________________ ग्राम, वन एवं पर्वत । वन एवं पर्वत कोसंबवन (२२३.१२)-काकन्दी नगरी के समीप एक योजन दूरी प्रमाण वाला कोसंब नाम का वन था।' उसमें अनेक मृग, सांमर, बराह, शश आदि के समूह रहते थे (२२३.१३) । इस बन की निश्चित पहचान नहीं की जा सकी है। सम्भव है, प्रयाग के समीप स्थित कोशाम्बी नगरी के आस-पास ही कोसंब वन रहा हो। त्रिकूटशैल (३१.३०)-कोशाम्बीनगरी त्रिकूटशैल के ऊपर स्थित लंकानगरी जैसी थी (३१.३०)। इससे ज्ञात होता है कि त्रिकूटशैल लंका में स्थित था। महाभारत के अनुसार इसकी स्थिति लंका में ही बतलायी गयी है। किन्तु कालिदास ने इसे अपरान्त में स्थित माना है। त्रिदशगिरिवर (७१.१५)-पिशाच त्रिदशगिरिवर का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जहाँ देवांगनाएँ इच्छापूर्वक विचरण करती हुईं प्रियगोत्र के कीर्तन द्वारा उल्लसित तथा रोमांचित अंगवाली होने पर श्वेदबिन्दु गिराती हैं तथा जिसका तल प्रदेश स्वर्ण का बना है वह त्रिदशगिरिवर पर्वतों का राजा तथा रमणीय है (७१) । नन्दनवन (४३.१५, १७८.२६), पंडकवन एवं भद्रशालवन (४३.१३)का उल्लेख स्वर्गलोक के वर्णन के प्रसंग में हुआ है। वहां से च्युत होनेवाले देव रम्यकपर्वत (०३.१७), वक्षार महागिरि (४३,१६) तथा हिमवंत पर्वतों एवं वनों के सुखों को स्मरण करते हैं। जैन साहित्य में इन वनों व पर्वतों का अनेक बार उल्लेख हुआ है। मलयपर्वत (८.३, ४५.१८)-विनीता का विपणिमार्ग विविध औषधियों और बहुत प्रकार के चन्दनों से युक्त होने के कारण मलयवन की शोभा को धारण कर रहा था। तथा रगणा-सन्निवेश मलयपर्वत की भांति लम्बी शाखाओं वाले पेड़ों से युक्त था (४५.१८)। यह मलयपर्वत दक्षिण भारत के अन्तर्गत तल्लमले अन्नमल और एलामल की पहाड़ियों के लिए प्रयुक्त जान पड़ता है। डा० सरकार ने मलयपर्वत की पहचान 'ट्रावनकोर' की पहाड़ियों से की है। मुरलारण (१२४.२२)-राजा भगु की कथा के प्रसंग में इस वन का उल्लेख हुआ है। यहां के मृगछौनों की आंखें अत्यन्त सुन्दर होती हैं। १. अत्थि इओ जोयणप्पमाणभूमि-भाए कोसंबं णाम वर्ण, २२३.१२. २. ज०-लो० कै०, पृ० ३००. ३. म० भा०, वनपर्व २७७.५४. रघुवंश, ४.५८ ५. अण्णा मलय-वण-राईओ इव संणिहिय-विविह ओसहीओ-बहुचंदणाओ य कुव०८.३. ६. डे-ज्यो० डिक्श०, पृ०७१.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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