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________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन नवसाहसांकचरित (१०.१४-२०) में मुरल लोगों का तथा अपरान्त देशों की सूची में मुरल नदी एवं मुरल लोगों का उल्लेख है। उत्तररामचरित (तृतीय अंक) में भी मुरल नदी का उल्लेख है। अतः कुव० का यह वन संभवतः इसी मुरल नदी के तट पर स्थित रहा होगा।' ___ मेरुपर्वत (१७८.२९) जैसे पर्वतों में मेरुपर्वत श्रेष्ठ है वैसे ही सब धर्मों में जैनधर्म श्रेष्ठ है (१७८.२९)। जैन साहित्य में मेरुपर्वत का विस्तृत वर्णन मिलता है। मेरु की पहचान वर्तमान में 'पामीर' से की गयी है। रोहणपर्वत (१६१.२०) -उद्योतनसूरि ने रोहणपर्वत का तीन बार उल्लेख किया है, जिससे ज्ञात होता है कि यह पर्वत पाताल में स्थित था और स्वर्णनिर्मित था। इसे खोदकर लोग धन प्राप्त करने की अभिलाषा रखते थे (२३४.३०)। इस पर्वत की वास्तविक पहचान करना कठिन है। यद्यपि प्राचीच ग्रन्थों में इसके अनेक उल्लेख मिलते हैं। डा० सांडेसरा ने इसे सीलोन में स्थित माना है, जिसका नाम 'आदम्सपिक' है। पउमचरियं में लवणसागर के समीप अन्य द्वीपों के साथ रोहणद्वीप की भी स्थिति मानी गई है।" रोहणपर्वत को रोहणद्वीप भी कहा गया है। अतः सम्भव है, यह वर्वत किसी समुद्र के किनारे रहा हो। कुवलयमाला में वर्णित दो वणिकपुत्र जहाज भग्न हो जाने से रोहणद्वीप में जा लगते हैं (१६२.१६) । विन्ध्यगिरिवर (९९.१४)-कोशल के समीप विन्ध्यनाम का महीधर था। उसके कुहर में विन्ध्यवास नाम का सन्निवेश था (६९.१४) । कुवलयचन्द्र ने नर्मदा नदी पार कर महाअटवी में प्रवेश किया ( २१.३३)। और आगे चलकर विन्ध्यपर्वत के वृक्षों के समीप एक कुटिया देखी (१२२.१) । विजयपुरी से लौटने पर सह्यपर्वत के वाद विन्ध्यपर्वत के प्रदेश में कुवलयचन्द्र का स्कन्धावार लगा था (१९५.१) । इस पर्वत की कंदरा में धातुवादी अपनी क्रियाएँ करते थे (१६५.६)। नायाधम्मकहा से ज्ञात होता है कि विन्ध्यपर्वत गंगा के दक्षिणी किनारे पर स्थित था तथा हाथियों के लिए प्रसिद्ध था। वर्तमान में मिर्जापुर के समीप एक पहाड़ी पर विन्ध्यवासिनी का मंदिर स्थित है। आधुनिक विन्ध्य अपनी प्राचीनता का प्रतीक है।' १. स०-स्ट० ज्यो०, पृ० ३२ नोटस् २. जा०-कुल० क० स्ट०, पृ० १३२. २. पुराणम्, जनवरी १९६४, पृ० २२४. ३. जा पायालंपत्तो खणामि ता रोहणं चेय-कुव० १०४-१८. ४. रोहणाचल ए सिलोनमां आदम्सपिकने नामे ओलखाता पर्वतर्नु नाम छे, त्यारे मलयाचल दक्षिणहिंदना पर्वतनु नाम छे ।- वर्णकसमुच्चय--भाग १, पृष्ठ ८६. ५. वि० -५० च०, ६-३२. ६. ज०-ला० के०, पृ० ३५६. ७. डे-ज्यो० डिक्श०, पृ० ३७. ८. अ०-प्रा० भौ० स्व०, पृ० २१.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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