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________________ भारतीय जनपद ५५ ग्रन्थ के अनुसार भिन्नभाल एवं जालौर के आसपास का प्रदेश, जिसका शासक वत्सराज रणहस्तिन् था ( २८३.१ ), गुर्जर देश कहा जाता रहा होगा । चीनीयात्री युवान च्वांग के वर्णन के अनुसार उद्योतन के उक्त कथन की पुष्टि होती है । गुर्जर देश के सम्बन्ध में डा० दशरथ शर्मा ने विशेष प्रकाश डाला है । ' गोल्ल ( १५०.२२ ) - गोल्लदेश के छात्र एवं व्यापारी विजयपुरी में उपस्थित थे (१५२.२४) । इनको काला, निष्ठुर, कलहप्रिय आदि कहा गया है । डा० उपाध्ये इन्हें आभीर सदृश मानते हैं (इन्ट्रो० १४४), किन्तु इनके रहने का स्थान कहाँ था, यह स्पष्ट नहीं हो पाता । २ डा० बुद्धप्रकाश ने सम्भावना व्यक्त की है कि गोल्ल तक्षशिला के समीप था । किन्तु उपर्युक्त उल्लेखों से इसके दक्षिण में होने की अधिक सम्भावना है । गोल्ल नामक देश का जैन साहित्य में अनेक बार उल्लेख हुआ है । गोल्ल की पहिचान गुन्टूर जिला में कृष्णानदी के किनारे स्थित गोली ( गल्लरु) से की जा सकती है । यह प्राचीन भारत का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यहाँ इक्ष्वाकु राजाओं के शिलालेख प्राप्त हुए हैं । * श्रवणवेलगोला के एक शिलालेख में गोल्ल और गोलालाचार्य के उल्लेख प्राप्त हैं, जो इस बात के प्रमाण हैं कि यह गोल्ल नामक देश दक्षिण भारत में ही कहीं स्थित था । " ढक्क (१५३.१ ) - ढक्क का कुव० की 'जे' प्रति में टक्क पाठ है। टक्क के निवासी दाक्षिण्य, दाण, पौरुष आदि से रहित थे तथा 'एहं तेह' शब्दों का अधिक उच्चारण कर रहे थे । सम्भवतः ये टक्क के म्लेच्छ रहे होंगे । टक्क पंजाब के एक प्रदेश को कहते थे । राजतरंगिणी के अनुसार यहाँ का शासक अलखा था, जिससे भोज के शासक ने उसे जीत लिया था । पीर के दक्षिण के प्रदेश एवं लाहौर के पड़ोसी मैदान को टक्क कहा जाता था, जिसे अलबीरुनी ने टकेसर कहा है । राजतरंगिणी में टक्क की पहचान वर्णित है । उसके अनुसार मोनियर विलियम्स ने इसे बाहीक देश माना है । १. शा० रा० ए०, पृ० ११०. २. ३. ४. ५. ६. ७. बु० -- स्ट० हि० सि०, पृ० ९४-९५. ज०-ला० कै०, पृ० २८६. बुलेटिन आफ मद्रास गवर्मेन्ट म्यूजियम, भाग १, पृ० १. जैन शिलालेख संग्रह, पृ० २६. Takka territory, the region situated to the south of the Pir Pantkal range and neighbouring on Lahore, which Albirūni has called Takeṣar. -B. AIHC. P. 159. For the identification of Takkadesa, See M. A. Stein— Kalhana's Rajatarangini Vol. I, P. 207.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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