SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन पूर्वदेश (६५.३१ ) - ) - ग्रन्थ में पूर्वदेश का तीन बार उल्लेख हुआ है । रत्नापुरी का राजकुमार दर्पफलिक जब विन्ध्याटिव में पहुँचा तो उसने वहाँ के बनजारे (वंजणायार) को अपना परिचय यह कह कर दिया कि मैं पूर्वदेश से आया हूँ- 'अहं पुव्व देसाओ प्रागग्रो - ( १४५.२० ) । दूसरे प्रसंग में कुवलयचन्द्र को विजयपुरी से अयोध्या भेजने के लिए उसके ससुर ने आदेश दिया कि पूर्वदेश तक पहुँचने में समर्थ मजबूत यान वाहन तैयार करो - 'भो भो, सज्जीकरेह पुव्वदेस - संपावयाई दढ कढिणाई जाणवाहणाई' ( १८०.२४ ) । इससे ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत में उत्तरभारत के निश्चित प्रदेश को पूर्वदेश के नाम से पुकारा जाता था । अयोध्या से रत्नापुरी तक का भाग पूर्वदेश से व्यवहृत होता रहा होगा । ५६ तीसरे प्रसंग में सोपारक का कोई व्यापारी मुक्ताफल लेकर पूर्वदेश गया था और वहाँ से चंवर खरीद कर लाया (६५.३१) । सम्भवतया वह हिमालय की तराई तक गया होगा, जहाँ चमरी गायों के चमर सस्ते मिलते रहे होंगे । कनिंघम के अनुसार आसाम, बंगाल, गंगानदी की उपत्यका, संबलपुर, उड़ीसा और गंजम का प्रदेश पूर्वीभारत में सम्मिलित था। प्राचीनसाहित्य में इसी को पूर्व- देश कहा जाता रहा होगा । मगध (१५२.२६, २६८. ९ ) - विजयपुरी में मगध के व्यापारी उपस्थित थे, जो दुर्बल, आलसी, वड़े पेटवाले तथा सुरतिप्रिय थे ( १५२.२६ ) । दूसरे प्रसंग में, भगवान् महावीर विहार करते हुए मगव नाम के देश में पहुँचे, जिसमें राजगृह नाम का नगर था, जिसका राजा श्रेणिक था । उद्योतनसूरि ने उक्त उल्लेख द्वारा एक ऐतिहासिक तथ्य का उद्घाटन किया है । जैन साहित्य में सर्वत्र मगध जनपद की राजधानी राजगृह एवं राजा श्रेणिक का उल्लेख मिलता है । हुयान्त्संग की गणना के अनुसार मगध जनपद की परिधि मण्डलाकार रूप में ८३३ मील थी । इसके उत्तर में गंगा, पश्चिम में वाराणसी, पूर्व में हिरण्य पर्वत और दक्षिण में सिंहभूमि थी । कुव० में प्रयुक्त मगध के लिए 'मगहा' शब्द उल्लेखनीय है । यह इस अनुश्रुति को प्रमाणित करता है कि मगधा (महा) नामक क्षत्रिय जाति की निवासभूमि होने के कारण यह जनपद 'मगध' कहलाया । मध्यदेश ( ७.६, १५२.२५ ) – कुव० में जम्बूद्वीप के भारतदेश में, वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में गंगा और सिन्धु के बीच का प्रदेश मध्यदेश, 9. Cunningham, A, "Ancient Geography of India" Calcutta, 1924, P. 572. २. मगहा णाम देसो, तत्थ य रायगिहं णाम णय रं, कुव० २६८- ९. ३. उ० – बु० भू० पृ० ३६१. ,
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy