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________________ ५४ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन वाराणसी में पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था-वम्मा-सुपस्स धम्म-णयरी वाणारसी णाम-(५६.२६ कुव०)। काशी जनपद में इस समय वाराणसी, मिर्जापुर, जौनपुर, आजमगढ़ और गाजीपुर जिले का भूभाग सम्मिलित है।' कोशल (७२.३०-३५).-कुव० में कोशल का उल्लेख जनपद एवं देश के रूप में हुआ है। इसको राजधानी कोशलपुरी थी, जो विश्व की प्रथम नगरी मानी गयी है (७३.१-२)। जैनपरम्परा के अनुसार इसकी स्थापना प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने की थी। कूव० में कोशल के सम्बन्ध में कहा गया है कि एक व्यापारी ने भाइल अश्वों के बदले में कोशल के राजा से गजपोत प्राप्त किये थे (६५.२८-२६)। कोशलपुरी से विन्ध्याटवी को पार कर पाटलिपुत्र जाया जाता था (७५.१२-१४, २९) तथा विन्ध्यावास की सीमा से कोशल नरेश के राज्य की सीमा मिली हुई थी (९९.१४-१५)। कोशल के व्यापारी विजयपुरी की मण्डी में उपस्थित होकर 'जला-तला ले' आदि शब्दों को बोलते थे (१५३.९)। सामान्यतया कोशल की पहचान उस कोशल जनपद से की जाती है, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। किन्तु कुव० के इन उल्लेखों के आधार पर कोशल की पहचान वर्तमान महाकोशल जनपद से की जा सकती है, जिसमें छोटा नागपुर का भूभाग सम्मिलित है । विन्ध्या अटवी एवं हाथियों की प्रसिद्धि इस पहचान का समर्थन करती है। यहाँ के व्यापारियों द्वारा प्रयुक्त 'जल-तल-ले' शब्द भी छत्तीसगढ़ी बोली से मिलते-जुलते हैं। गुर्जरदेश (१५३.४)-उद्योतनसूरि ने 'गुर्जरदेश' का तीन बार उल्लेख किया है। दक्षिणापथ से वाराणसी को लौटते समय रास्ते में स्थाणु ने एक देवमंदिर में ठहर कर रात्रि के अंतिम पहर में किसी गुर्जर पथिक से एक द्विपदी सुनी थी। यह गुर्जरपथिक नर्मदा के आस-पास का रहनेवाला रहा होगा, क्योंकि उसकी द्विपदी सुनकर स्थाणु फिर नर्मदा तोर पर जा पहुँचा (५९.९)। दूसरे प्रसंग में, गुर्जर देश के निवासी विजयपुरी के बाजार में उपस्थित थे, जो पुष्ट शरीरवाले, धार्मिक और संधि-विग्रह में निपुण थे (१५३.४) तथा तीसरे प्रसंग में उद्योतन ने कहा है कि शिवचन्द्रगणि के शिष्य यक्षदत्तगणि ने मंदिरों द्वारा गुर्जरदेश को रमणीक बनाया था- रम्मो गुज्जरदेसो जेहि कमो देवहरएहिं (२८२.११) । इसके साथ ही उद्द्योतन ने जैसे सिन्ध के निवासियों को सैन्धव, मालवा के निवासियों को मालव कहा है, वैसे ही गुर्जरदेश के निवासियों को गुर्जर कहा है। अतः गुर्जर प्रदेश का स्वतन्त्र अस्तित्व इससे प्रमाणित होता है । १. शा०-आ० भा०, पृ० ५३. २. जाम०, कुव० क० स्ट०, पृ० ११७. ३. उपाध्ये, कुव० इन्ट्रो०, पृ० १४५. ४. राईए पच्छिम-जामे केण वि गुज्जर-पहियएण इमं धवल-दुवहयं गीतं, कुव० ५९-४.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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