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________________ नाट्य कला २७५ तइय-णयणग्गि-विलसंत-विज्जुलए-तथा मेघगर्जना के द्वारा भयंकर अट्टहास करता हुआ नृत्य में संलग्न होकर महादेव की नटराजमुद्रा को चुरा लिया ।' इससे स्पष्ट है कि शंकर की ताण्डव मुद्रा की प्रमुख विशेषताओं-मुण्डमाला धारण किए हुए, त्रिनेत्र खोले हुए एवं अट्टहास करते हुए-से उद्योतनसूरि भली-भाँति परिचित थे। महादेव की इस नटराजमुद्रा तथा ताण्डव नृत्य के सम्बन्ध में श्रीकुमारस्वामो ने 'डांस आफ शिव' नामक ग्रन्थ में विशद प्रकाश डाला है। इस नटराजमुद्रा की अनेक मनोज्ञ मूत्तियाँ भी विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुई हैं । २ शंकर के ताण्डव नृत्य के अतिरिक्त ताण्डव नृत्य को अन्यविधियाँ भी ८वीं सदी में प्रचलित रही होंगी। क्योंकि आदिपुराण में पुष्पाञ्जलि-प्रकीर्णक ताण्डव नृत्य तथा जलसेचन-ताण्डव नृत्य का भी उल्लेख मिलता है।' - नत्य-भावों पर आश्रित अनुकृति को नृत्य कहते हैं। इसमें केवल आंगिक अभिनय की प्रधानता रहती है तथा कथोपकथन का अभाव रहता है। अतः नृत्य में श्रव्य कुछ नहीं होता। इसके देखने मात्र से सामाजिक आनंदित होते हैं । इन विशेषताओं के कारण नृत्य नाट्य एवं नृत्त से भिन्न होता है। उद्योतनसूरि ने नृत्य के सम्बन्ध में निम्नोक्त जानकारी दी है: १. कन्याएँ नृत्यशास्त्र में इतनी पारंगत होती थीं कि दूसरों को नृत्यलक्षण __ आदि की शिक्षा देती थों-गहियं णट्ट-लक्खणं १२३.२४ । २. नृत्यकला शिक्षा का मुख्य विषय थी (२२.९)। मठ के छात्र अनेक प्रकार के नृत्य सीखते थे-सिवखंति के वि छत्ता छत्ताण य गच्चणाइंच १५०. २३ । ३. शृंगार, वीर, करुण आदि भावों को नृत्य में आँखों के द्वारा व्यक्त किया जाता था । नगर में विभिन्न अवसरों पर अनेक प्रकार के नृत्य होते थे। यथा-- ४. राजभवन में विलासिनी स्त्रियों के नृत्य-च्चिरविलातिणीयणं (१७.२०)। ५. जन्मोत्सव पर मदरस पीकर घूम-घूम कर नाचने से लावण्य की बूंदों १. गज्जिय-भीमट्टहास-णच्चणाबद्ध-केली-वावड-हर-रूव-हरे मेघ-संघाए ।-१४८.७. २. भटशाली-'द आइकोनोग्राफी आफ बुद्धिस्ट एण्ड ब्राह्मेनिकल स्कल्पचर्स इन द ढाका म्युजियम'।-जै० यश० सां० में उद्धृत । ३. कृतपुष्पाञ्जलेरस्य ताण्डवारम्भसंभ्रमे, आदिपुराण-जिनसेन, (१.११४). ४. अन्यद्भावाश्रयं नृत्यम्, दशरूपक, १,८. ५. सिंगार-वीर-बीहच्छ-करुण-हास-रस-सूययाइं णयणाणि वि-२२.२३.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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