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________________ २७६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन सदृश हार तथा मुक्तावली के मोती गिराने वाली विक्षिप्त कामिनियों के नृत्य-(१८.१५) । ६. हर्षपूर्वक नाचने वाले नागरिकों का नृत्य गच्चइ णायरलोओ (१८.३१)। ७. मुग्धा युवति का नृत्य-णच्चंति के वि मुइया-(९३.१४) । ८. पवन से उद्वेलित तरंगों का नत्य (६८.१३, १२१.१९) ९. कुल की वृद्ध महिलाओं का विवाहोत्सव पर नृत्य (१७१.१३) १०. भाई के विवाह पर खुशी का नृत्य (४७.३०) ११. रहस-वधाव का नृत्य-एसो वि जणो लिहिओ णच्चंतो रहस-तोस भरिय मणो-(१८७.२०)। १२. विवाह पर वाद्यों के साथ महिलाओं का विलासपूर्वक नृत्य (१८८.८)। १३. कौमुदी-महोत्सव पर प्रमत्त लोगों का जनपद में नृत्य (१०३.१४)।। नाट्य-नायक, नायिका एवं अन्य पात्रों का आंगिक, वाचिक, आहार्य तथा सात्विक अभिनयों द्वारा अवस्थानुकरण करना नाट्य कहलाता है।' अवस्थानुकरण से तात्पर्य है-चाल-ढाल, वेश-भूषा, आलाप-प्रलाप आदि के द्वारा पात्रों की प्रत्येक अवस्था का अनुकरण इस ढंग से किया जाय कि नटों में पात्रों का तादात्म्यभाव हो जाये । अर्थात् दर्शकों के समक्ष तदाकार रूप उपस्थित हो हो जाय । जैसे नट रावण की प्रत्येक प्रवृत्ति की ऐसी अनुकृति करे कि सामाजिक उसे रावण ही समझें। नाट्य दृश्य होता है इसलिए इसे 'रूप' भी कहते हैं और रूपक अलंकार की तरह आरोप होने के कारण 'रूपक' भी कहते हैं। इसके नाटक आदि दस भेद होते हैं।' उद्द्योतनसरि ने निम्न प्रसंगों में विशेष रूप से नाट्य के सम्बन्ध में सूचना दी है। राजा दढ़वर्मन् के दरबार में भरतनाट्यशास्त्र के प्रतिष्ठित विद्वान् उपस्थित रहते थे-भारह सत्थ-पत्तट्ठा-(१६.२३) । ७२ कलाओं में नाट्य का द्वितीय स्थान थापालेक्खं णट्टहं (२२.१)। संगीत एवं काव्य के साथ नाट्य भी प्रमुख कला के रूप में गिना जाता था-गंधव-कव्व-पट्टे (१६.२८) । नट, नर्तक, मुष्टिक एवं चारणगण विभिन्न प्रकार के नाट्य करते हुए गाँव-गाँव में घूमते थे। नटों का समूह (नाटक मंडली) रंचमंच पर नाटक प्रस्तुत करता था, जिसे देखने के लिए पूरा गाँव उमड़ पड़ता था (४६-४७) । उत्सवों पर नाट्य करते हुए नटों को भरतपुत्र के नाम से पुकारा जाता था एवं पुरस्कृत १. दशरूपक, १.७. २. दशरूपक, १.७८ ३. णड-णट्ट-मुट्ठिय-चारण-गणा परिभमिउ समाढत्ता-४६.९.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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