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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
वसुराज का वर्तमान भव एवं बलभद्र का जन्म - महाराजा समुद्रविजय का सबसे छोटा भाई वसुराज अतिरूपवान था, वह जब नगर में घूमने निकलता तब नगर की स्त्रियाँ उसके सुंदर रूप पर मोहित हो जाती और गृहकार्य भूल जाती, नगरजनों ने यह आपत्ति महाराजा के समक्ष प्रकट की, जिससे महाराजा ने उसे युक्तिपूर्वक राजमहल में ही रोक कर नगर में जाना बंद करा दिया। इससे दुःखी होकर वह नगर छोड़कर चला गया और छल से ऐसी अफवाह फैलायी कि वह स्वयं चिता में जल मरा हो।
अहो ! देखो तो सही, इसे कहते हैं अपने हाथ से अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना। वसुराज ने अपने पूर्वभव में मुनिदशा पाकर भी देहातीत सिद्धदशा तो नहीं चाही और सुंदर देह मांगी, फलस्वरूप आज अपने ही महल में अपराधियों की तरह कैद रहना पड़ा। हे जीव ! अब तो ऐसे विपरीत विचार छोड़ दे।।
___ वसुराज के वियोग से समुद्रविजय अत्यन्त दुःखी हुए, परन्तु निमित्त ज्ञानियों ने कहा कि वह कुमार जीवित है और अमुक वर्ष पश्चात् आपका उससे मिलाप होगा।
वसुराज राजगृही गया। वहाँ से एक विद्याधर उसे विजयार्द्ध पर्वत पर ले गया फिर वह चम्पापुर गया। उसे जगह-जगह राज कन्याओं सहित अनेक प्रकार के वैभव की प्राप्ति हुई। अंत में वह रोहिणी के स्वयंवर में गुप्त वेश में पहुँचा और रोहिणी ने उसे वरमाला पहनायी। अन्य राजा अपमानित होकर उससे लड़ने लगे, अंत में समुद्रविजय लड़ने के लिए तैयार हुए, उन्हें देखकर वसुराज ने उनके चरणों में पत्र सहित एक बाण फेंका जिस पर लिखा था – “आपका छोटा भाई चरणों में नमस्कार करता है।"