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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23 63 12 राजगृही में विश्वनंदि ( महावीर स्वामी) राजकुमार राजगृही नगरी के राजा विश्वभूति के पुत्र रूप में धर्म प्राप्त करने हेतु अवतरित हुआ 'विश्वनंदि' कुमार का जीवन चरित्र यहाँ प्रस्तुत है अथवा उनके बहाने महावीर स्वामी के जीव का मानो मोक्षमार्ग ही बताया जा रहा है। राजा विश्वभूति श्वेत केश देखकर संसार से विरक्त हुए और अपने भाई विशाखभूति को राज्य सौंपकर तथा विश्वनंदी को युवराज पद देकर मुनि हुए । युवराज विश्वनंदि ने एक अति सुंदर उद्यान बनवाया था जिसके प्रति उन्हें अति ममत्व था, क्यों न हो ? जबकि वह उद्यान ही उसके चैतन्य उद्यान के खिलने में कारणभूत होने वाला है। राजा विशाखभूति का पुत्र विशाखनंदि ने वह अद्भुत उद्यान देखा और उसका मन मोहित हो गया । उसने माता-पिता के पास वह उद्यान उसे दिलवा देने की हठ की। अपने पुत्र को उद्यान दिलवा देने के लिये काका विशाखभूति ने कपटपूर्वक विश्वनंदि को काश्मीर राज्य पर विजय प्राप्त करने के बहाने राज्य से दूर भेज दिया। युवराज शत्रु को जीतने के लिये सेना सहित चल दिया । उसके जाने के बाद चचेरे भाई / विशाखनंदि ने उसके उद्यान पर अधिकार कर लिया। शत्रु राज्य पर विजय प्राप्त कर विश्वनंदि राजगृही लौट आया। लौटते ही उद्यान देखने गया। जहाँ विशाखनंदि आधिपत्य जमाकर उनसे लड़ने को तैयार बैठा था। युवराज ने उसके साथ युद्ध किया । वह डर कर एक विशाल वृक्ष पर चढ़ गया, तब युवराज विश्वनंदि ने उस पेड़ को ही उखाड़
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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