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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
पराश्रित परिणाम नियम से दुःखदायी (त्रिपृष्ठ वासुदेव-विजय बलदेव और अश्वग्रीव प्रतिवासुदेव)
हम यहाँ शासन नायक महावीर स्वामी के उस पूर्वभव की कथा उत्तर पुराण के आधार से कह रहे हैं जिस भव में वे त्रिपृष्ठ नाम के वासुदेव भरतक्षेत्र की पोदनपुरी में महाराजा प्रजापति के पुत्र रूप में हुए थे, जो पूर्वभव में विश्वनंदि नाम से विख्यात थे। इन्हीं के साथ इनके पूर्वभव के काका विशाखभूति भी यहीं विजय बलदेव के रूप में जन्में। तथा विशाखभूति का विशाखनंदि नाम का पुत्र अलकापुरी में अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव के रूप में जन्मा।
पूर्वभव के राग-द्वेष वश ये तीनों जीव यहाँ भी राग-द्वेष के कारण इतनी विभूति पाकर भी सदा दुःखी ही रहे।
महाराजा प्रजापति दोनों पुत्रों सहित राजसभा में बैठे थे। उस समय मंत्री ने निवेदन किया कि हे स्वामी ! यद्यपि आपकी प्रजा सर्व प्रकार से सुखी है तथापि आजकल एक महाभयंकर सिंह ने लोगों की हिंसा करके उसे भयभीत कर रखा है। उसका उपद्रव इतना बढ़ गया है कि लोग इधर-उधर आ-जा भी नहीं सकते। जो प्रजा का दुःख दूर न कर सके वह राजा किस काम का ?
ऐसा विचार कर राजा ने सिंह के उपद्रव से प्रजा को बचाने हेतु सेना को तैयार होने की आज्ञा दी।
इतने में त्रिपृष्ठ कुमार (महावीर का जीव) उठे और हँसकर बोले-इतने छोटे से काम के लिये आपका जाना आवश्यक नहीं है। मैं अभी जाकर सिंह को मारता हूँ। ऐसा कहकर त्रिपृष्ठ कुमार वन में