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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 8 महाराजा पद्मनाभ ( भगवान चन्द्रप्रभ का दूसरा पूर्वभव) 49 धातकीखण्ड के विदेहक्षेत्र में रत्नसंचयपुर के राजा कनकप्रभ और रानी सुवर्णमाला के एक होनहार पद्मनाभ नाम का पुत्र था । एक बार राजा कनकप्रभ राजमहल की छत पर बैठे-बैठे नगर सौन्दर्य का अवलोकन कर रहे थे। इतने में देखा कि एक बूढ़ा बैल गहरे कीचड़ में धस गया है और तड़प-तड़प कर मर गया है। यह देखकर राजा को वैराग्य जागृत हुआ, वे विचारने लगे कि अरे ! अभी भी मैं इस संसार के मोहरूपी कीचड़ में धसा हुआ हूँ ? ऐसा विचार करने पर वे धर्मात्मा कनक राजा संसार सुखों से अत्यन्त विरक्त हो गये और तत्काल ही उनका चित्त मुनिमार्ग में प्रविष्ट हुआ, उन्होंने तुरन्त अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्य सौंपकर श्रीधर मुनिराज के समीप मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली । राजसभा में बैठे हुए राजा पद्मनाभ को अचानक कोलाहल सुनाई दिया – “बचाओ-बचाओ की आवाजें तेजी से सुनाई देने लगी । " हाथी-घोड़े भी भय से चिल्लाने व भागने लगे । क्या हुआ, क्या हुआ ? इसप्रकार चारों ओर से आवाजें आने लगीं। इतने में राजा ने देखा कि एक अतिसुंदर विशाल गजराज नगर की ओर दौड़ता हुआ आ रहा है, वह मदोन्मत्त होकर भाग रहा है और जो चपेट में आये उसे सूँड में कसकर फेंक रहा है या पैरों से कुचल रहा है। लोग भयभीत होकर कोलाहल कर रहे हैं उस हाथी को वश में करने लिए राजा पद्मनाभ कटिबद्ध हुए । उन्होंने युक्तिपूर्वक हाथी
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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