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________________ 46 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 प्रकार जानते हो, चित्त में से इष्ट वियोग का विषाद दूर करो तथा हे राजन् ! अवधिज्ञान से जानकर मैं कहता हूँ कि तुम्हारा पुत्र कुशल है, उसका कुछ भी अमंगल नहीं होगा। वह भावी तीर्थंकर है और कुछ ही दिनों में अनेक प्रकार की समृद्धि . सहित आकर तुमसे मिलेगा। मुनिराज इतना कहकर, आशीर्वाद देकर आकाश मार्ग से विहार कर गये। मुनिराज के ऐसे वचनों से राजा का चित्त शांत हुआ और धर्मध्यान में विशेष रूप से उद्यमी हुआ। दूसरी ओर जो दुष्ट देव राजकुमार का अपहरण कर ले गया था, उसने राजकुमार को मगरमच्छ से भरे हुए एक सरोवर में फेंक दिया। परन्तु पुण्य प्रताप से राजकुमार किनारे आ गये। चारों ओर घोर जंगल था उस वन में चलते-चलते वे एक सुंदर पर्वत पर पहुंचे। वहाँ हिरण्य नाम का एक देव रहता था, वह उनकी शूरवीरता देखकर प्रसन्न हुआ और बोला हे पुण्यात्मा ! मैं आपका सेवक हूँ जब आप याद करोगे तब मैं आपकी सेवा में उपस्थित होऊँगा, क्योंकि पूर्व जन्म में आपने मुझ पर उपकार किया था। आज उसका ऋण चुकाने का मुझे अवसर मिला है, अत: मैं आपकी सेवा में तत्पर हूँ। किसप्रकार ?' ऐसा राजकुमार के पूछने पर देव ने कहा- पूर्वभव में मैं सूर्य नाम का किसान था, तब चन्द्र नाम के किसान ने मेरा धन चुरा लिया था, वह धन आपने मुझे वापस दिलाया था और चन्द्र को
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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