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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 39 महासती चंदनबाला : पूर्वभवावलोकन (फल तो मिलता ही है पर अज्ञानी भोगता है और ज्ञानी जानता है) क्या आपको पता है ? कि महासती चंदनबाला महावीर स्वामी की मौसी, बचपन से ही धार्मिक संस्कारों में पली-बड़ी, जीवन शुद्ध सात्विक एवं पवित्र, सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की आराधक; फिर भी इतना महान संकट, कष्ट एवं कलंक लगने का कारण कौन है ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हम सती चंदनबाला के पूर्व भवों का अवलोकन करते हैं क्योंकि बिना उदय के कुछ भी नहीं होता और उदय तब ही होता है, जब बंध किया हो तथा बंध परिणामों/ भावों के अनुसार होता है तो देखते हैं कि किन परिणामों के कारण ऐसे कर्म का बंध हुआ था चंदनबाला को, जो अनेक भवों के बाद उदय में आकर उन्हें कष्ट देने का निमित्त कारण बना। तीन भव पूर्व चंदनबाला श्री सोमशर्मा की सोमिला नाम की पुत्री थी, तब उसका विवाह शिवभूति नामक एक युवक से हुआ था, उसकी एक ननद थी, जिसका नाम चित्रसेना था। योग्य समय में चित्रसेना का श्री देवशर्मा ब्राह्मण से विवाह हो गया; परन्तु कुछ समय पश्चात् चित्रसेना के पति की मृत्यु हो गई, तब बहिन चित्रसेना को शिवभूति सहायता हेतु अपने घर ले आया। यह बात सोमिला को पसंद नहीं आई, अतः वह उसे परेशान करने लगी, फिर भी जब चित्रसेना उसके आया। XWN
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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